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Malti Computer Center Tikamgarh
created Mar 30th, 10:52 by Ram999
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संवेदनशीलता ही अभिव्यक्ति का कारण है। शरीर के विभिन्न क्रियाकलापों में इसी के विविध रूप दिखाई देते हैं। जब व्यक्ति प्रसन्न होता है तो वह है ही उसके मुस्कराता एवं हंसता है। आंखों व चेहरे पर वह भाव झलक उठता है। अत: अंगों को देखकर किसी की अभिव्यक्ति प्रत्येक मनुष्य में ही नहीं, जानवरों तक में होती है, भलेही उसके स्वरूप में भिन्नता हो। हंसने काआंसू से भी गहरा संबंध माना गया है। विशेषज्ञों का मत है कि संवेदना परिपक्व एवं स्थायी होते जाने पर भाव गंभीर होते जाते एवं क्रियाकलापों में परिवर्तन दिखाई देने लगता है। प्रेम, सहानुभूति एवं भक्ति इसी कीउन्नत अवस्थाएं हैं। हंसना या मुस्करानास्कराता एवं हंसता है। आंखों व चेहरे पर वह भाव झलक उठता है। अत: अंगों को देखकर किसी कीअभिव्यक्ति प्रत्येक मनुष्य में ही नहीं, जानवरों तक में होती है, भलेअंतर अभिव्यक्ति का स्वरूप है। ये सूक्ष्म मनोभाव हैं। अभी तक कोई भी मनोवैज्ञानिक हंसने वाले इस विचार को सही ढंग से प्रतिपादित नहीं कर पाया है। यह उम्र के साथ बदलता है। मुस्कराना एवं हंसना संवेदनशीलता की तीव्रता पर निर्भर करता है। हंसने के दौरान बच्चे का संपूर्ण शरीर हिलता है। इसी प्रकार एंथ्रोपायड बंदरों मेंदेखा गया है। यही नहीं, शरीर के कुछ संवेदनशील अंगों का स्पर्श करने पर भी हंसीआती है। सात वर्ष के बच्चे के इन विशिष्टअंगों का स्पर्श करने पर उसकी मांसपेशियों में तीव्र परिवर्तन होता है। कुछ लोगों में इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप उनके शरीर के रोंगटे उभर जाते हैं । कांख, अंगूठे की पोर एवं पैर के तलवे को काफी संवेदनशील बताया गया है, ये संवेदनशील अंग हैं, जिनका स्पर्श करने पर हंसी आती है । हसने पर आंखों की मांसपेशियों में हो ने वाले परिवर्तनों का गहन अध्ययन किया है। उनके अनुसार पांच माह के बच्चे को जब उसकी मां हंसाती है तो उसका मस्तिष्क सक्रिया हो उठता है, बच्चों कीआंखों की चमक अधिक हो जाती है, परंतु मां के स्थान पर किसी अजनबी चेहरे के होने पर भी बच्चे कीआंखों में विशेष चमक होती है। निराशा या अन्य अवस्था में आंखों की चमक अधिक हो जाती है, परन्तु मां के स्थान पर किसी अजनबी चेहरे के होने पर बच्चे की आंखें वह भाव प्रदर्शित नहीं कर पाती हैं। इसी तरह नवदंपत्ति कीआंखों में भी विशेष चमक होती है।निराशा या अन्य अवस्था में आंखों की मांसपेशिया उतनी सक्रिया व सजग नहीं हो पाती। जिससे वह मूलभाव दृष्टिगोचर नहीं होता है। इसका कारण स्पष्ट करते हुए डचीन ने कहा है कि प्रसन्नता अति सूक्ष्म अभिव्यक्ति है, जिसे उसी क्षण देखाजा सकता। वैज्ञानिक जगत में इसे डचीन मुस्कराहट के नाम से जाना जाता है। इस दौरान भौहें नीचे झुक जाती हैं। तेज व चमकीली आंखें प्रसन्नव हर्षित मन: स्थिति की द्योतक हैं। अधिक हंसनेपर आंखों में आंसू आ जाते हैं। यद्यपि यह रोने पर भी होता है, परंतु इस समय आंखें चमकने की बजाय धुंधली दिखाई देती हैं। तनाव के समय भी आंखें बुझी बुझी सी रहती है। तनाव की अवस्था में आंखों की पुतली खून एवं अन्य द्रव्यों से भर जाती है। क्रोध या उत्तेजना की स्थिति में ये और भी लाल हो उठती है।यह संभवत: अत्यधिक स्नायु ऊर्जा के प्रवाह के कारण होता है, परंतु जब व्यक्ति प्रसन्न होता है तो यह ऊर्जा उल्लास बनकर आंसू के रूप में टपकने लगती है।
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