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हिमालय का बदलता स्वरूप

created Today, 10:17 by shrinarayan


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हिमालय पृथ्वी की सबसे टेक्टोनिक टक्कर सीमा पर स्थित है। भारतीय प्लेट हर साल लगभग 5-सेंटीमीटर की गति से दिशा में यूरेसियन प्लेट के नीचे खिसक रही है। इसी टक्कर ने हिमालय को जन्म दिया और आज भी यह पर्वत श्रंखला उठ रही है। इसमें भारी तनाव जमा हो रहा है। वैज्ञानिकों ने हिमालय में कई सिस्मिक गैप किए हैं- वे लंबे खंड पिछले 200-500 वर्षों में कोई बड़ा भूकंप नहीं आया। मिसाल के तौर पर मध्य हिमालय सीमा क्षेत्र में 1803 के बाद कोई सतही फटने वाला महाभूकंप नहीं आया। पुराने नक्शे में सीमाएं भूकंप जोन तय करती थीं। नया नक्शा भूवैज्ञानिक सच्चाई पर टिका है। फॉल्ट कहां हैं, कितनी नरम है, जीपीएस से तनाव कितना जमा हो रहा है, ये सारी बातें अब तय करेंगी कि आपका घर किस जोन में है। जो शहर या गांव दो जोनों की सीमा पर हैं, उन्हें अब जोखिम वाले जोन में ही गिना जाएगा। बिल्डरों के लिए कोई लूपहोल नहीं बचा। अब पूरे हिमालयी राज्यों में एकसमान और सबसे सख्त भूकंप-रोधी डिजाइन अनिवार्य हो गए हैं। दूसरा बड़ा बदलाव सीमा वाले इलाकों को लेकर हुआ है। पहले कई शहरों और कस्बों को दो जोन की लाइन ने बीच से काट रखा था। अब नियम बिल्कुल साफ है कि जो भी बस्ती दो जोनों की सीमा पर है या उसके आसपास है, उसे जोखिम वाले जोन में ही रखा जाएगा। इससे बिल्डरों के पास कम मानक अपनाने का कोई बहाना नहीं बचा। सबसे अहम बात यह है कि अब भूकंप जोन तय करने में जिला या राज्य की सीमाओं का कोई रोल नहीं रहा

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