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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Yesterday, 05:40 by lovelesh shrivatri
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हर युवा चाहता है कि उसे समाज में रहने के दौरान सुख-सुविधाएं, अच्छी नौकरी या कारोबार और प्रतिष्ठा मिले। यह चाहत ही उसे सुरक्षित भविष्य तलाशने के लिए प्रेरित करती है। एक दौर था जब व्यक्ति इस बात पर जोर देता था कि वह स्वावलम्बी बने। सरकारी नौकरियों की चाहत होती भी तो इतने अवसर नहीं होते थे। अवसर बढ़ तो स्पर्धा भी बढ़ने लगी। इस स्पर्धा के माहौल के बीच आज का युवा स्वरोजगार की बजाय नौकरियों की तरफ भाग रहा है, जबकि सब जानते हैं कि हमारे देश में आबादी के अनुपात में सरकारी और निजी क्षेत्र में नौकरियों की तादाद अपेक्षाकृत कम है। रही-सही कसर शिक्षा प्रणाली ने पूरी कर दी है जिसमें शिक्षित बेरोजगारों की फौज साल दर-साल बढ़ती ही जा रही है। उपलब्ध नौकरियां ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है। इसी कारण से शिक्षित बेरोजगारों की भीड़ बढ़ती जा रही है।
बेरोजगारों की बढ़ती हुई फौज और उपलब्ध नौकरियों की संख्या में भारी अंतर होने की वजह से बेरोजगारों में अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो रही है। यह अवसाद इसलिए भी बढ़ने लगा है क्योंकि आज हर अभिभावक अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीरियर और प्रशासनिक अधिकारी के रूप में देखना चाहता है। यही दबाव बच्चों को चौदह-पन्द्रह वर्ष की उम्र में ही नीट व जेईई परीक्षाओं की तैयारीयों में झोंक देता है। अवसाद के दौर में रही-सही कसर इन परीक्षाओं के लिए कोचिंग संस्थाओं का फैलता जाल पूरी करने लगा है।
इस समूचे परिदृश्य के बीच सवाल यह यह उठता है कि युवाओं को करियर की राह कैसे बताई जाए? प्रारंभिक शिक्षा के बाद विद्यार्थी अपनी योग्यता व रूचि के अनुरूप करियर का चुनाव करें, यह ज्यादा जरूरी है। इसके लिए ऐसे मार्गदर्शक की जरूत होती है जो उसे समय-समय पर राह दिखाने का काम करे। गुरू और अभिभावकों की भूमिका इस दिशा में काफी अहम साबित हो सकती है। विद्यालय के स्तर पर ही यह काम प्रभावी तरीके से किया जा सकता है। बच्चों की कमजोरी व मजबूती के आधार पर ही उनमें संभावनाओं की तलाश करनी चाहिए। ऐसा होने पर ही परीक्षाओं के दबाव के चलते युवा अवसाद में जाने से बचेगे। बेहतर काउंसलिंग हो तो ही बच्चों को भविष्य तय करने में मदद मिल सकेगी।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम सबसे बड़ा़ उदाहरण हैं, जो पहले सेना में चयनित नहीं होने पर निराश हो चुके थे। लेकिन सही मार्गदर्शन मिला तो न केवल मिसाइल मैन के रूप में पहचान बना पाए, बल्कि देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचे। सोशल मीडिया का बेहतर उपयोग हो तो युवाओं को सही दिशा बताने का काम हो सकता है। आज तो हालत यह है कि सोशल मीडिया की बुराइयां ज्यादा हावी हो रही है और युवाओं को भटकाने का काम कर रही है। सोशल मीडिया युवा पीढ़ी को समाज में अपनो से दूर करता जा रहा है, इस खतरे को अभिभावकों को भी समझना होगा।
बेरोजगारों की बढ़ती हुई फौज और उपलब्ध नौकरियों की संख्या में भारी अंतर होने की वजह से बेरोजगारों में अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो रही है। यह अवसाद इसलिए भी बढ़ने लगा है क्योंकि आज हर अभिभावक अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीरियर और प्रशासनिक अधिकारी के रूप में देखना चाहता है। यही दबाव बच्चों को चौदह-पन्द्रह वर्ष की उम्र में ही नीट व जेईई परीक्षाओं की तैयारीयों में झोंक देता है। अवसाद के दौर में रही-सही कसर इन परीक्षाओं के लिए कोचिंग संस्थाओं का फैलता जाल पूरी करने लगा है।
इस समूचे परिदृश्य के बीच सवाल यह यह उठता है कि युवाओं को करियर की राह कैसे बताई जाए? प्रारंभिक शिक्षा के बाद विद्यार्थी अपनी योग्यता व रूचि के अनुरूप करियर का चुनाव करें, यह ज्यादा जरूरी है। इसके लिए ऐसे मार्गदर्शक की जरूत होती है जो उसे समय-समय पर राह दिखाने का काम करे। गुरू और अभिभावकों की भूमिका इस दिशा में काफी अहम साबित हो सकती है। विद्यालय के स्तर पर ही यह काम प्रभावी तरीके से किया जा सकता है। बच्चों की कमजोरी व मजबूती के आधार पर ही उनमें संभावनाओं की तलाश करनी चाहिए। ऐसा होने पर ही परीक्षाओं के दबाव के चलते युवा अवसाद में जाने से बचेगे। बेहतर काउंसलिंग हो तो ही बच्चों को भविष्य तय करने में मदद मिल सकेगी।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम सबसे बड़ा़ उदाहरण हैं, जो पहले सेना में चयनित नहीं होने पर निराश हो चुके थे। लेकिन सही मार्गदर्शन मिला तो न केवल मिसाइल मैन के रूप में पहचान बना पाए, बल्कि देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचे। सोशल मीडिया का बेहतर उपयोग हो तो युवाओं को सही दिशा बताने का काम हो सकता है। आज तो हालत यह है कि सोशल मीडिया की बुराइयां ज्यादा हावी हो रही है और युवाओं को भटकाने का काम कर रही है। सोशल मीडिया युवा पीढ़ी को समाज में अपनो से दूर करता जा रहा है, इस खतरे को अभिभावकों को भी समझना होगा।
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