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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤ आपकी सफलता हमारा ध्‍येय ✤|•༻

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मां को अपने बेटे, साहूकार को अपने देनदार और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवत-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके में था। बाबा भारती उसे सुलतान कह कर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते और देख-देखकर प्रसन्‍न होते थे। ऐसे लगन, ऐसे प्‍यार, ऐसे स्‍नेह से कोई सच्‍चा प्रेमी अपने प्‍यारे को भी चाहता होगा। उन्‍होंने अपना सबकुछ छोड़ दिया था, रूपया, माल, असबाब, जमीन, यहां तक कि उन्‍हें नागरिक जीवन से भी घृणा थी। अब गांव से बाहर एक छोटे से मंदिर में रहते और भगवान का भजन करते थे। परंतु सुलतान से बिछुड़ने की वेदना उनके लिए असह्य थी। मैं इसके बिना नहीं रह सकूंगा, उन्‍हें ऐसी भ्रांति-सी हो गई थी। वे उसकी चाल पर लट्टू थे। कहते, ऐसे चलता है जैसे मोर घन-घटा को देखकर नाच रहा हो। गांवों के लोग इस प्रेम को देखकर चकित थे, कभी कभी कनखियों से इशारे भी करते थे, परंतु बाबा भारती को इसकी परवा थी। जब तक संध्‍या समय सुलतान पर चढ़कर आठ दस मील का चक्‍कर लगा लेते, उन्‍हें चैन आता। खडगसिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर कांपते थे। होते होते सुलतान की कीर्ति उसके कानों तक भी पहुंची। उसका हृदय उसे देखने के लिए अधीर हो उठा। वह एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुंचा और नमस्‍कार करके बैठ गया। बाबा भारती ने पूछा खडगसिंह क्‍या हाल है, खडगसिंह ने सिर झुकाकर उत्‍तर दिया, आपकी दया है। कहो, इधर कैसे गए, सुलतान की चाह खींच लाई, विचित्र जानवर है, देखोगे तो प्रसन्‍न हो जाओगे। मैंने भी बड़ी प्रशंसा सुनी है। उसकी चाल तुम्‍हारा मन मोह लेगी। कहते हैं देखने में भी बहुत सुंदर है। क्‍या कहना, जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है। बहुत दिनों से अभिलाषा थी, आज उपस्थित हो सका हूं। बाबा और खडगसिंह दोनों अस्‍तबल में पहुंचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से, खडगसिंह ने घोड़ा देखा आश्‍चर्य से। उसने सैकड़ों घोड़े देखे थे, परंतु ऐसा बांका घोड़ा उसकी आंखों से कभी गुजरा था। सोचने लगा, भाग्‍य की बात है। ऐसा घोड़ा खडगसिंह के पास होना चाहिए। इस साधु को ऐसी चीजों से क्‍या लाभ कुछ देर तक आश्‍चर्य से चुपचाप खड़ा रहा। इसके पश्‍चात् हृदय में हलचल होने लगी बालकों की सी अधीरता से बोला, परंतु बाबाजी, इसकी चाल देखी तो क्‍या। (बुद्ध अकादमी टीकमगढ़) बाबा जी भी मनुष्‍य ही थे। अपनी वस्‍तु की प्रशंसा दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय अधीर हो गया। घोड़े को खोलकर बाहर लाए और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगे। एकाएक उचककर सवार हो गए। घोड़ा वायु-वेग से उड़ने लगा। उसकी चाल देखकर उसकी गति देखकर खडगसिंह के हृदय पर सांप लोट गया। वह डाकू था और जो वस्‍तु उसे पसंद जाए उस पर अपना अधिकार समझता था। जाते-जाते उसने कहा, बाबाजी मैं यह घोड़ा आपके पास रहने दूंगा। बाबा भारती डर गए अब उन्‍हें रात को नींद आती थी। सारी रात अस्‍तबल की रखवाली में कटने लगा।

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