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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Today, 11:03 by rajni shrivatri
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राजू की मां उससे बहुत लाड़-प्यार करती थी। इतना कि उसके अपराध को भी अनेखा कर देती थी। एक बार जब राजू स्कुल में पढ़ता था तो एक दिन अपने किसी साथी की पेंसिल चुरा लाया। वह पेंसिल उसने अपनी मां को दे दी। मां को पूछना चाहिए था कि आखिर वह किसकी पेंसिल ले आया है और वह पेंसिल लेकर उसने अपराध किया है मगर मां ने ऐसा नहीं किया। इसके विपरीत वह प्रसन्न हुई और पेंसिल अपने पास रख ली। राजू को उसने कुछ नहीं कहा इस प्रकार राजू रोज कुछ-न-कुछ कभी पुस्तक कभी पेन कभी स्लेट और कभी काॅपी चुरा लाता। यह उनका रोज का काम बन गया था।
इस सब चीजों को देखकर राजू की मां को प्रसन्नता होती थी परिणाम यह हुआ कि राजू पढ न सका। ये सब तो बचपन की बातें थी जब राजू बड़ा हो गया और युवावस्था में पहुंच गया तो नामी चोर बन गया। इसी क्रम में एक दिन वह राजमहल में चारी करता पकड़ा गया। जब फांसी लगने का समय आया तो राजू को फांसी के लिए ले जाया गया। शहर की पूरी प्रजा और उसकी मां सब बाहर खडे थे। फांसी की सजा के नियम के अनुसार राजू से उनकी अतिम इच्छा पूछी गई। राजू ने कहा- मैं एक बार अपनी मां से मिलना चाहता हूं। मां को बुलाया गया राेती-चिल्लाती मां राजू के पास आई। राजू बोला- मां तुम्हारे कानों में एक बात कहना चाहता हूं। मां ने बात सुनने के लिए अपने एक कान को राजू के मुंह से सटा दिया। राजू ने मां के कान को इतना चोर से काटा कि खून की धार बहने लगी और कान कट कर अलग हो गया। यह देखकर सब हैरान रह गए।
जब राजू से इसका कारण पूछा तो उसने बताया आज का यह दिन मुझे अपनी इस मां के कारण देखाना पड़ा है। यदि बचपन में जब मैं स्कूल से पेंसिल चुरा कर लाया था, मेरी मां मुझे डांट देती और स्कूल में पेंसिल को वापस करवा देती तो मैं इतना बड़ा चोर नहीं बन पता और न ही मुझे आज फांसी पर .चढ़ना पड़ता। यह सुनकर मां को इतना पश्चाताप हुआ कि वह वही बेहोश होकर गिर पड़ी।
सीख:- इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि बच्चों को उसकी पहली गलती पर सावधान कर देना चाहिए। अगर ऐसा नहीं करते है तो यह अनदेखी कल उसको गलत रास्ते पर ले जायेगा और हमें पछताने के सिवा कुछ नहीं बचेगा।
इस सब चीजों को देखकर राजू की मां को प्रसन्नता होती थी परिणाम यह हुआ कि राजू पढ न सका। ये सब तो बचपन की बातें थी जब राजू बड़ा हो गया और युवावस्था में पहुंच गया तो नामी चोर बन गया। इसी क्रम में एक दिन वह राजमहल में चारी करता पकड़ा गया। जब फांसी लगने का समय आया तो राजू को फांसी के लिए ले जाया गया। शहर की पूरी प्रजा और उसकी मां सब बाहर खडे थे। फांसी की सजा के नियम के अनुसार राजू से उनकी अतिम इच्छा पूछी गई। राजू ने कहा- मैं एक बार अपनी मां से मिलना चाहता हूं। मां को बुलाया गया राेती-चिल्लाती मां राजू के पास आई। राजू बोला- मां तुम्हारे कानों में एक बात कहना चाहता हूं। मां ने बात सुनने के लिए अपने एक कान को राजू के मुंह से सटा दिया। राजू ने मां के कान को इतना चोर से काटा कि खून की धार बहने लगी और कान कट कर अलग हो गया। यह देखकर सब हैरान रह गए।
जब राजू से इसका कारण पूछा तो उसने बताया आज का यह दिन मुझे अपनी इस मां के कारण देखाना पड़ा है। यदि बचपन में जब मैं स्कूल से पेंसिल चुरा कर लाया था, मेरी मां मुझे डांट देती और स्कूल में पेंसिल को वापस करवा देती तो मैं इतना बड़ा चोर नहीं बन पता और न ही मुझे आज फांसी पर .चढ़ना पड़ता। यह सुनकर मां को इतना पश्चाताप हुआ कि वह वही बेहोश होकर गिर पड़ी।
सीख:- इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि बच्चों को उसकी पहली गलती पर सावधान कर देना चाहिए। अगर ऐसा नहीं करते है तो यह अनदेखी कल उसको गलत रास्ते पर ले जायेगा और हमें पछताने के सिवा कुछ नहीं बचेगा।
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