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created Today, 16:15 by Mergekhanna
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होली बसंत ऋतु में बहुत ही उमंग के साथ मनाई जाती है। जिसे बसंत का यौवन भी कहा जाता है। दुनिया सरसों की पीली साडी पहनकर किसी का राह देखती हुई प्रतीत होती है। पुराने समय में होली को आपसी प्रेम का प्रतीक माना जाता है जिसमें सभी छोटे बडे लोग मिलकर पुराने भेदभावों को भूल जाते हैं। जब पूरी दुनिया रंग से सराबोर होने लगती है तो इंसान एक अलग तरह के अनंद में झूमने लगता है। होली की अहमियत सभी लोगों के लिए समान होती है लेकिन भारत देश में हिंदुओं के लिए इसकी अधिक अहमियत होती है इसलिये आज के ही दिन होलिका नाम की राक्षसी जलकर राख हो गई थी जिसकी खुशी में सभी हिंदुओं ने जशन मनाया था और उस दिन से इसे हर साल होली के नाम से माया जाने लगा। होली सभी लोगों का आपस में भेदभाव और अमीरीर गरीी और क्षेत्र और जाति और समदाय आदि को भूलकर एक दूसरे पर रंग फेंकने का उपदेश देता है। यह हमें सिखता है कि हम सभी मानव हैं और सभी मानव एक समान होते है। होली की वजह से जिन लोगों में सलों साल से लडाई चलती आ रही होगी वे भी आपस में मित्र बन जाते हैं। होली के परव को मनाने से एक दिन पहले होलिका जलाना बहुत अधिक जरूरी होता है इसलिऐ की अगर होकिा दहन नहीं किया जाएगा तो लोग अपने प्राचीनकाल के नियमों या नीति रिवाजों को भूल जायंगे जिससे उनको अपने देश के इतिहास का पता नहीं होगा और वचे अपने देश के वीर पुरूषों से अनजान रह जाएंगे। इसलिए अपने देश के इतिहास को याद रखने बे लिए होलिका दहन करना बहुत जरूरी होता है। अगले दिन होली को केवल दोपहर तक खेलने की परंपरा होती है। जब ऋतुराज बसंत का आगमन होता है तब होली मनाया जाता है। एक बार एक राजा था जिसकी बहन को बहुत सी शैलानी ताकत और वरदान मिले हुए थे जिनके बल होलीपर वह देश पर शासन कना चाहता था। वह अपनेआप को भगवान समझता था। वह चाहता था कि सभी उसे भगवान समझं और उसकी पूजा करें लेकिन प्रहलाद अपनी भगवान के प्रति भावना नहीं छोडना चाहता था जिसकी वजह से उसके पिता ने उसपर बहुत बुरा किया लेकिन वह अपनी ात पर अडा रहा। राजा ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को गोद में लेकर चिता पर बैठने के लिए कहा लेकिन उस चिता में होलिका जलकर राख हो गई और प्रहलादको कोई चोट नहीं आई इसी वजह से इस दिन को हर साल मनाया जाने लगा। भारत में होली की बहुत अधिक अहमियत है। होली को रंग क प्रतिका कहा जाता है जिसमें लाेग बहुत से साधनों के जरिये एक दूसरे का रगों से रंग देते हैा। होली से एक दिन पहले होलिका दहन की तैयारी की जाती है जिसमें सभी लोग घास और लकडी और गोबर का ढेर को जमा करते हैं। शाम के समय इस ढेर में आग लगा दी जाती है जिसके अगले दिन के लिए लोग अपने से ही लोग रंग और फुके और पिचकारी आदि खरीदकर रखते हैं। होली के दिन सभी लोग तरह तरह के कवान बनाते हैं जिसका सभी लोग मिल जुल कर आनंद लेते हैं। आज के दिन सभी लोगों में एक नई उमंग आ जाती है। आजकल लोग हाली खेलने के लिए अबीर का प्रयोग करते हैं।
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