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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Yesterday, 09:02 by lucky shrivatri


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डिजिटल दुनिया की चकाचौंध में मोबाइल और सोशल मीडिया की लत शारीरिक और मानसिक नुकसान करने वाली साबित हो रही हो तो इसे खतरे की घंटी माना जाता चाहिए। खतरे की इस घंटी की आवाज को सुनने का अब वक्‍त भी गया है क्‍योंकि नई पीढ़ी के किशोर और युवा डिजिटल लत का शिकार होकर नशामुक्ति केन्‍द्रों का रूख करने लगे है। इस लत के खतरे को लेकर पिछले सालो में कई स्‍तर पर हुए अध्‍ययनों में भी चेतावनियां दी जाती रही है। खासतौर से यह कि लगातार आभासी दुनिया के सम्‍पर्क में रहने से स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी गंभीर समस्‍याएं होते देर नहीं लगने वाली।  
जेन जेड़ में मोबाइल और सोशल मीडिया की लत की यह समस्‍या दुनियाभर में है, लेकिन हमारा देश इस महामारी का केंद्र बनता जा रहा है। यह चिंता सेंसर टावर की ताजा रिपोर्ट में उजागर होती है, जिसमें कहा गया है कि हमारे देश में पिछले वर्ष मोबाइल पर 1.12 ट्रिलियन घंटे बिताए गए, जो दुनिया में सबसे ज्‍यादा है। यह तथ्‍य और भी ज्‍यादा चिंताजनक है कि 0-18 वर्ष के चालीस करोड़ बच्‍चों में से हर तीसरा बच्‍चा मोबाइल की लत का शिकार है। ऐसा इसलिए भी क्‍योंकि हमारे यहां अभिभावक खुद बच्‍चों पर नजर रखने के बजाव मोबाइल में ही व्‍यस्‍त रहने लगे है। दुधमुह बच्‍चे तक को मोबाइल पकड़ा दिया जाता है।  
ज्‍यादा पुरानी बात नहीं है जब पीजीआइ चंडीगढ़ ने सोशल मीडिया की लत की बीमारी मानकर उपचार की गाइडलाइन तय करने की बात कही थी। नई पीढ़ी में अवसाद, चिंता अकेलेपन की समस्‍याएं सामने आने की सबसे बड़ी वजह भी यही है कि आभासी दुनिया के इस दौर में व्‍यक्ति असली दुनिया के रिश्‍तों तक की अनदेखी करने लगता है। बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने भी एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि बच्‍चों का ऑनलाइन गेम एडिक्‍शन आने वाले समय में ड्रग्‍स और मादक पदार्थो की लत की तरह ही साबित होगा। इसलिए यह जरूरी है कि इस पर कोई कानून लाया जाना चाहिए। हमारे युवा मोबाइल सोशल मीडिया की लत को नशामुक्ति केंद्रों तक जाने की हद तक नहीं पालें इस बात की चिंता करनी ही होगी। धूम्रपान और मादक पदार्थो के सेवन की तरह यह लत अस्‍पतालों तक पहुंचाने लगी है।  
 
 
  

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