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ब्राह्मण, चोर, और दानव |

created Saturday July 26, 08:24 by ICON COMPUTER


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एक गाँव में द्रोण नाम का ब्राह्मण रहता था भिक्षा माँग कर उसकी जीविका चलती थी सर्दी-गर्मी रोकने के लिये उसके पास पर्याप्त वस्त्र भी नहीं थे एक बार किसी यजमान ने ब्राह्मण पर दया करके उसे बैलों की जोड़ी दे दी ब्राह्मण ने उनका भरन-पोषण बड़े यत्‍न से किया आस-पास से घी-तेल-अनाज माँगकर भी उन बैलों को भरपेट खिलाता रहा इससे दोनों बैल खूब मोटे-ताजे हो गये उन्हें देखकर एक चोर के मन में लालच गया उसने चोरी करके दोनों बैलों को भगा लेजाने का निश्चय कर लिया इस निश्चय के साथ जब वह अपने गाँव से चला तो रास्ते में उसे लंबे-लंबे दांतों, लाल आँखों, सूखे बालों और उभरी हुई नाक वाला एक भयङकर आदमी मिला
उसे देखकर चोर ने डरते-डरते पूछा----"तुम कौन हो ?"
उस भयङकर आकृति वाले आदमी ने कहा----"मैं ब्रह्मराक्षस हूँ, पास वाले ब्राह्मण के घर से बैलों की जोड़ी चुराने जा रहा हूँ ।"
राक्षस ने कहा ----"मित्र ! पिछले छः दिन से मैंने कुछ भी नहीं खाया चलो, आज उस ब्राह्मण को मारकर ही भूख मिटाऊँगा हम दोनों एक ही मार्ग के यात्री हैं चलो, साथ-साथ चलें ।"
शाम को दोनों छिपकर ब्राह्मण के घर में घुस गये ब्राह्मण के शैयाशायी होने के बाद राक्षस जब उसे खाने के लिये आगे बढ़ने लगा तो चोर ने कहा----"मित्र ! यह बात न्यायानुकूल नहीं है पहले मैं बैलों की जोड़ी चुरा लूँ, तब तू अपना काम करना ।"
राक्षस ने कहा----"कभी बैलों को चुराते हुए खटका हो गया और ब्राह्मण जाग पड़ा तो अनर्थ हो जायगा, मैं भूखा ही रह जाऊँगा इसलिये पहले मुझे ब्राह्मण को खा लेने दे, बाद में तुम चोरी कर लेना ।"
चोर ने उत्तर दिया ----"ब्राह्मण की हत्या करते हुए यदि ब्राह्मण बच गया और जागकर उसने रखवाली शुरु कर दी तो मैं चोरी नहीं कर सकूंगा इसलिये पहले मुझे अपना काम कर लेने दे ।"
दोनों में इस तरह की कहा-सुनी हो ही रही थी कि शोर सुनकर ब्राह्मण जाग उठा उसे जागा हुआ देख चोर ने ब्राह्मण से कहा----"ब्राह्मण ! यह राक्षस तेरी जान लेने लगा था, मैंने इसके हाथ से तेरी रक्षा कर दी ।"
राक्षस बोला----"ब्राह्मण ! यह चोर तेरे बैलों को चुराने आया था, मैंने तुझे बचा लिया ।"
इस बातचीत में ब्राह्मण सावधान हो गया लाठी उठाकर वह अपनी रक्षा के लिये तैयार हो गया उसे तैयार देखकर दोनों भाग गये
 
सीख : शत्रु का शत्रु मित्र

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