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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

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इससे बड़ी विडम्‍बना और क्‍या होगी कि जिस प्रकृति के बूते मानव ने ऊंचाइयां हासिल की है, उसी से अपनी सुख-सुविधाओं के नाम पर खिलवाड़ करने में जुटा है। जलवायु परिवर्तन के खतरे कोई नए नहीं है। इन्‍हीं खतरों की चपेट में आकर इंसान नित नई समस्‍याओं के जाल में उलझता जा रहा है। प्राग में हाल में हुई गोल्‍डश्मिट कॉन्‍फ्रेस के दौरान पेश किए शोधों ने तो खतरे की भयावहता की और संकेत कर दिया है। इन शोधों के मुताबिक धरती ग्‍लेशियरों के पिघलने से ज्‍वालामुखी विस्‍फोटों का खतरा भी बढ़ गया है। अभी तक माना जाता था कि ग्‍लेशियर पिघलने से समुद्रो का जलस्‍तर बढ़ रहा है लेकिन नए शोधों ने चिंता और बढ़ा दी है।  
अध्‍ययन में बताया गया कि ग्‍लेशियरों का भारी वजन पृथ्‍वी की सतह और इसके नीचे मैग्‍मा परतों पर दवाब डालता है। इससे ज्‍वालमुखी गतिविधियां नियंत्रित रहती है। लेकिन मानव की गतिविधियों के कारण पारिस्थितिकी तंत्र में नित नए असंतुलन पैदा है। ऐसी स्थिति में दुनियाभर में पर्वतीय क्षेत्रों में ग्‍लेशियरों पर संकट लगातार बढ़ रहा है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों का भी कहना है कि दुनिया के बढ़ते प्रदूषण का प्रभाव हिमालय सहित अन्‍य पहाड़ों पर पड़ रहा है। धरती पर कार्बन की मात्रा में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है और उससे ग्‍लेशियरों को खतरा पैदा हो गया है। हाल में एक अन्‍य रिपोर्ट में बताया गया था कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता तापमान ग्‍लेशियर से ढके हिंदूकुश पहाडों की चोटी को लगातार गला रहा है। यह हालात रहे तो इस सदी के अंत तक हिमालय पर्वत के ग्‍लेशियरों का करीब दो तिहाई हिस्‍साा खत्‍म हो जाएगा। खास बात है कि यह ग्‍लेशियर दुनिया के दो अरब से अधिक लोगों को पाने की पानी उपलब्‍ध कराते है। ऐसा है कि पर्यावरण असंतुलन के कारण आने वाले संकटों को लेकर पहली बार आशंका जताई गई हो, लेकिन दुर्भाग्‍य है कि अध्‍ययनों में बार-बार के संकेत दिए जाने के बावजूद दुनिया भर में इस मसले पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इसे बड़े संकट से पार पाने के लिए अंतरराष्‍ट्रीय सम्‍मेलनों में प्रस्‍ताव तैयार किए जाते हैं, मगर उन पर गंभीरता से अमल नहीं किया जाता।  

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