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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Yesterday, 05:07 by lovelesh shrivatri


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पुलिस बल कहीं का भी हों, अपराधों की रोकथाम के लिए उसे अपराधियों के प्रति सख्‍त रवैया अपनाना ही पड़ता है। लेकिन यह सख्‍ती जब क्रूरता में तब्‍दील होती दिखे तो पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठना स्‍वाभाविक है। ऑस्‍ट्रेलियाई पुलिस ने भारतीय मूल के एक व्‍यक्ति के साथ मामूली बात पर जैसा बर्ताव किया उसे क्रूरता की पराकाष्‍ठा ही कहा जाएगा। पिछले दिनों एडिलेड के एक पार्क में अपनी पत्‍नी से बहस को घरेलू हिंसा करार देते हुए ऑस्‍ट्रलियन पुलिस ने भारतीय मूल के गौरव  को जमीन पर गिरा गर्दन पर घुटना रख दिया। इससे ब्रेन इंजरी होने पर वे कोमा में चले गए और पुलिस हिरासत में रहने के दौरान अस्‍पताल में ही गौरव की मौत को गई। हैरत की बात यह हैं कि कुंडी उनकी पत्‍नी दोनों ने पुलिस के रवैये पर आपत्ति की थी। पुलिस एजेसियों से यह अपेक्षा की जाती हैं कि उन्‍हें अपराध कम करने पर ध्‍यान देना चाहिए बल्कि ऐसे प्रयास भी करने चाहिए, जिससे आम जनता के बीच पुलिस की छवि मददगार की बनी रहे। ऑस्‍ट्रेलिया की इस घटना ने अमरीका के बहुचर्चित जार्ज फ्लॉयड केस की याद दिला दी है। पांच साल पहले एक प्रदर्शन के दौरान अमरीकी पुलिस अधिकारी फ्लॉयड को सड़क पर दबोच अपने घुटने से उसकी गर्दन को आठ मिनट से ज्‍यादा समय तब दबोचे रखा। जार्ज की मौत के बाद अमरीका के कई शहरों में दंगे हुए ऑस्‍ट्रलिया हो या अमकीका, ब्रिटेन हो  या फिर कोई दूसरा देश, पुलिस प्रताड़ना के ऐसे कई मामलों में नस्‍लभेदी रवैया भी सामने आता है। ऑस्‍ट्रेलिया के इस मामले में भी नस्‍लभेद की बू रही  है। पुलिस प्रताड़ना का शिकार हुए भारतीय मूल के गौरव तो आतंकवादी थे और ही ऐसा गंभीर अपराध किया था, जिसकी वजह से पुलिस को ऐसी सख्‍ती करनी पडे़। विकसित कहे जाने वाले देशों में भी जब रंगभेद के आधार पर पुलिस प्रताड़ना के मामले सामने आते हों तो चिंता होनी चाहिए।  ने केवल व्‍यवस्‍था के मामले में बल्कि खेलों में भी ऐसा भेद पीड़ादायक ही होता है। पीड़ा इसलिए भी कि इस तरह का भेदभावूपर्ए व्‍यवहार सामाजिक असामनता की खाई को और चौड़ा करने वाला ही होता है। नस्‍लभेद से उपजी हिंसा तो ओर भी खतरनाक है, जिसमें सदैव जान माल के नुकसान की आशंका बनी रहती है।   
 
 
 
 
 
 
  

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