Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Yesterday, 04:49 by Sai computer typing
2
338 words
99 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
saving score / loading statistics ...
00:00
बेंगलूरू में हाल ही आयोजित राॅयल चैलेंजर्स बेंगलूरू आरसीबी टीम की जीत का जश्न एक बार फिर उस कड़वे सच को उजागर कर गया, जिससे देश की व्यवस्था बार-बार आंखे मूंदती रही है अव्यवस्थित भीड़ प्रबंधन और लचर प्रशासनिक तैयारियां। जिस तरह लाखों की भीड़ चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर इकट्ठा हुई और उसके बाद मची भगदड़ में कई लोग घायल हुए और कुछ की जानें चली गई, वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यह हादसा न सिर्फ एक चेतावनी है, बल्कि सवाल भी खड़ा करता है कि क्या हम अब भी भीड़ प्रबंधन नहीं सीख पाए है?
सोशल मीडिया के इस युग में किसी भी आयोजन की सूचना पलक झपकते ही लाखों लोगों तक पहुंच जाती है। यही कारण है कि जब बेंगलूरू में आरसीबी के जश्न की खबर फैली, तो स्टेडियम के बाहर लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा, लेकिन प्रशासन और आयोजकों ने शायद इस तकनीकी युग की तीव्रता को नजर अंदाज कर दिया। उत्साह के अतिरेक में जनता ने भी आवश्यक सावधानी नहीं बरती, जो भीड़ में तब्दील हो गई। भीड़ नियंत्रण की कोई ठोस योजना नहीं थी, आपातकालीन व्यवस्थाएं नाकाफी थी और सुरक्षा बलों की संख्या भी अपेक्षा से बहुत कम थी। इस हादसे के लिए पुलिस-प्रशासन के साथ आयोजक भी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने हालात को देखते हुए उचित कदम नहीं उठाए। जब पहले ही टीम विजयी जुलूस को सरकार ने रद्द कर दिया था, तो स्टेडियम के कार्यक्रम को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरती चाहिए थी। पंरतु ऐसा प्रतीत होता है कि आयोजकों ने महज उत्साह में आयोजन कर डाला। इस बात पर विचार ही नहीं किया कि भीड़ उमड़ी तो क्या होगा। ऐसे हादसे हमारे देश में नए नहीं है। कभी धार्मिक आयोजनों, कभी राजनीतिक रैलिया, रेलवे स्टेशनों और खेल आयोजनों में हम अक्सर देखते है कि भीड़ के सामने व्यवस्था लाचार हो जाती है। हर बार एक जैसी प्रतिक्रियाएं सामने आती है दोषारोपण, जांच के आदेश और फिर सब कुछ भुला दिया जाता है। बेंगलूरू की घटना के बाद भी इस पुरानी रवायत को ही दोहराया गया है। यह वाकई चिंता की बात है।
सोशल मीडिया के इस युग में किसी भी आयोजन की सूचना पलक झपकते ही लाखों लोगों तक पहुंच जाती है। यही कारण है कि जब बेंगलूरू में आरसीबी के जश्न की खबर फैली, तो स्टेडियम के बाहर लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा, लेकिन प्रशासन और आयोजकों ने शायद इस तकनीकी युग की तीव्रता को नजर अंदाज कर दिया। उत्साह के अतिरेक में जनता ने भी आवश्यक सावधानी नहीं बरती, जो भीड़ में तब्दील हो गई। भीड़ नियंत्रण की कोई ठोस योजना नहीं थी, आपातकालीन व्यवस्थाएं नाकाफी थी और सुरक्षा बलों की संख्या भी अपेक्षा से बहुत कम थी। इस हादसे के लिए पुलिस-प्रशासन के साथ आयोजक भी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने हालात को देखते हुए उचित कदम नहीं उठाए। जब पहले ही टीम विजयी जुलूस को सरकार ने रद्द कर दिया था, तो स्टेडियम के कार्यक्रम को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरती चाहिए थी। पंरतु ऐसा प्रतीत होता है कि आयोजकों ने महज उत्साह में आयोजन कर डाला। इस बात पर विचार ही नहीं किया कि भीड़ उमड़ी तो क्या होगा। ऐसे हादसे हमारे देश में नए नहीं है। कभी धार्मिक आयोजनों, कभी राजनीतिक रैलिया, रेलवे स्टेशनों और खेल आयोजनों में हम अक्सर देखते है कि भीड़ के सामने व्यवस्था लाचार हो जाती है। हर बार एक जैसी प्रतिक्रियाएं सामने आती है दोषारोपण, जांच के आदेश और फिर सब कुछ भुला दिया जाता है। बेंगलूरू की घटना के बाद भी इस पुरानी रवायत को ही दोहराया गया है। यह वाकई चिंता की बात है।
