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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
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पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए आज का दिन खासा महत्व रखता है। विश्व पर्यावरण दिवस पर इस बार की थीम 'प्लास्टिक प्रदूषण को मात दें' है। दुनिया में इस समय सबसे बड़ी चिंता पर्यावरण संतुलन और पृथ्वी के तापमान को लेकर है। अब यह कोई छिपा तथ्य नहीं हैं कि प्लास्टिक आज पर्यावरण प्रदूषण का आम और सबसे बड़ा कारक है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता हैं कि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर वर्ष दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक बैंग का उपयोग किया जाता है, जो सभी प्रकार के अपशिष्टों का करीब 10 फीसदी है। पृथ्वी पर इतना प्लास्टिक मौजूद हैं कि इससे पूरी पृथ्वी को पांच बार लपेटा जा सकता है। यह स्थिति बेहद खतरनाक है क्योंकि प्लास्टिक को खत्म होने में 450 से 1000 साल लगते है।
दुनिया में पर्यावरण पर दुष्प्रभाव को देखते हुए सरकारों की और से इस पर प्रतिबंध लगाने के आश्वासन दिए जाते रहे हैं लेकिन हकीकत में किसी भी प्रयास का असर जमीन पर होता हुआ नहीं दिखाई दिया। इसका उपयोग लगातार बढ़ता गया। हमारे देश मे ही करीब 15 हजार टन प्लास्टिक अपशिष्ट प्रतिदिन निकला है और यह मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है। पृथ्वी पर प्लास्टिक प्रदूषण इसलिए भी खतरनाक हैं कि इससे जलवायु परिवर्तन का संकट, प्रकृति, भुमि और जैव विविधता को नुकसान तथा कचरे की परेशानी बढ़ जाती है। यही माइक्रोप्लास्टिक खेतों में जमा होकर जमीन को भी बंजर बना रहा है।
ऐसे में प्लास्टिक की प्रलय को रोकने के लिए सभी को एकजुट होना होगा। इसकी खपत कम करने से ही माइक्रोप्लास्टिक को कम किया जा सकता है। इसके लिए सरकार, उद्योग और आम लोगों को मिलकर काम करना होगा। व्यक्तिगत स्तर पर पहल करनी होगी। केन्या की पर्यावरणविद और नोबेल पुरस्कार विजेता बंगारी मथाई ने एक समय कहा था कि सभ्य होना है, तो जंगलो के साथी बनो, प्रकृति से जुड़ो उससे प्रेम करो। हमें पूर्वज भी प्रतिदिन प्रकृति और पृथ्वी की आराधना की राह बताकर गए है। ऐसे में उसी राह पर चलने में मंगल होगा।
दुनिया में पर्यावरण पर दुष्प्रभाव को देखते हुए सरकारों की और से इस पर प्रतिबंध लगाने के आश्वासन दिए जाते रहे हैं लेकिन हकीकत में किसी भी प्रयास का असर जमीन पर होता हुआ नहीं दिखाई दिया। इसका उपयोग लगातार बढ़ता गया। हमारे देश मे ही करीब 15 हजार टन प्लास्टिक अपशिष्ट प्रतिदिन निकला है और यह मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है। पृथ्वी पर प्लास्टिक प्रदूषण इसलिए भी खतरनाक हैं कि इससे जलवायु परिवर्तन का संकट, प्रकृति, भुमि और जैव विविधता को नुकसान तथा कचरे की परेशानी बढ़ जाती है। यही माइक्रोप्लास्टिक खेतों में जमा होकर जमीन को भी बंजर बना रहा है।
ऐसे में प्लास्टिक की प्रलय को रोकने के लिए सभी को एकजुट होना होगा। इसकी खपत कम करने से ही माइक्रोप्लास्टिक को कम किया जा सकता है। इसके लिए सरकार, उद्योग और आम लोगों को मिलकर काम करना होगा। व्यक्तिगत स्तर पर पहल करनी होगी। केन्या की पर्यावरणविद और नोबेल पुरस्कार विजेता बंगारी मथाई ने एक समय कहा था कि सभ्य होना है, तो जंगलो के साथी बनो, प्रकृति से जुड़ो उससे प्रेम करो। हमें पूर्वज भी प्रतिदिन प्रकृति और पृथ्वी की आराधना की राह बताकर गए है। ऐसे में उसी राह पर चलने में मंगल होगा।
