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सीपीसीटी प्रशिक्षण केन्द्र उमरिया (9301406862)
created Jun 6th, 07:07 by RAMNARESHPATEL
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हिन्दी साहित्य सम्मेलन (मान्यता) अधिनियम, 1956
उद्देश्यों और कारणों का विवरण:- विधेयक के साथ संलग्न उद्देश्यों और कारणों का विवरण नीचे दिया गया है:-
‘’हिंदी साहित्य सम्मेलन हिंदी साहित्य और हिंदी के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं की सबसे प्रतिनिधि संस्था है। इसका पहला अधिनियम 1910 में पंडित मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में हुआ था। इसे 1911 में सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट (1910 का 21) के तहत एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया था। अपने अस्तित्व के पैंतालिस वर्षों के दौरान इसने हिंदी की प्रगति के लिए उल्लेखनीय कार्य किया गया है। इसका अंतिम अधिवेशन प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार और कार्यकर्ता किसी न किसी रूप में हिंदी साहित्य व सम्मेलन से जुड़े रहे हैं। इसके अध्यक्षों में ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल हैं, जिन्होंने हमारे देश के सार्वजनिक जीवन में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है।
1950 में इसके अंतिम सत्र के बाद सम्मेलन के कामकाज को लेकर कानूनी विवाद उठे जिसके कारण रिसीवर की नियुक्ति की गई। मुकदमेबाजी अब लगभीग लगभग पांच साल से चल रही है और पता नहीं यह कब खत्म होगी। सम्मेलन का नियमित कामकाज रिसीवर की सामान्य देखरा देखरेक्ष में चलता रहा है लेकिन राष्ट्रीय गतिविधि की विभिन्न शाखाओं में हिंदी की जरूरतों को पूरा करने वाली एक सशक्त संस्था के रूप में सम्मेलन की प्रगति रुकी हुई हे। इस विधेयक का उद्देश्य सम्मेलन को एक मजबूत आधार पर स्थापित करना है ताकि यह हिंदी की प्रगति और हिंदी भाषा से जुड़ी विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए भविष्य में काम करने के लिए स्वतंत्र हो सके।
विधेयक में सम्मेलन के भावी नियमावली को तैयार करने के लिए एक अंतरिम बोर्ड का गठन किया गया है, जिसके अनुसार इसकी शासी संस्था, स्थाई समिति का गठन किया जा सकेगा। यह सम्मेलन के प्रशासन का तत्काल कार्यभार भी लेगी। जब स्थाई समिति का गठन हो जो जाएगा, तो वह सम्मेलन को चलाने की जिम्मेदारी लेगी ओर फिर अंतरिम बोर्ड स्वत: ही भंग हो जोएगा। देखें यूपी गजट असाधारण, दिनांक 7 अप्रैल, 1956।
उद्देश्यों और कारणों का विवरण:- विधेयक के साथ संलग्न उद्देश्यों और कारणों का विवरण नीचे दिया गया है:-
‘’हिंदी साहित्य सम्मेलन हिंदी साहित्य और हिंदी के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं की सबसे प्रतिनिधि संस्था है। इसका पहला अधिनियम 1910 में पंडित मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में हुआ था। इसे 1911 में सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट (1910 का 21) के तहत एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया था। अपने अस्तित्व के पैंतालिस वर्षों के दौरान इसने हिंदी की प्रगति के लिए उल्लेखनीय कार्य किया गया है। इसका अंतिम अधिवेशन प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार और कार्यकर्ता किसी न किसी रूप में हिंदी साहित्य व सम्मेलन से जुड़े रहे हैं। इसके अध्यक्षों में ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल हैं, जिन्होंने हमारे देश के सार्वजनिक जीवन में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है।
1950 में इसके अंतिम सत्र के बाद सम्मेलन के कामकाज को लेकर कानूनी विवाद उठे जिसके कारण रिसीवर की नियुक्ति की गई। मुकदमेबाजी अब लगभीग लगभग पांच साल से चल रही है और पता नहीं यह कब खत्म होगी। सम्मेलन का नियमित कामकाज रिसीवर की सामान्य देखरा देखरेक्ष में चलता रहा है लेकिन राष्ट्रीय गतिविधि की विभिन्न शाखाओं में हिंदी की जरूरतों को पूरा करने वाली एक सशक्त संस्था के रूप में सम्मेलन की प्रगति रुकी हुई हे। इस विधेयक का उद्देश्य सम्मेलन को एक मजबूत आधार पर स्थापित करना है ताकि यह हिंदी की प्रगति और हिंदी भाषा से जुड़ी विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए भविष्य में काम करने के लिए स्वतंत्र हो सके।
विधेयक में सम्मेलन के भावी नियमावली को तैयार करने के लिए एक अंतरिम बोर्ड का गठन किया गया है, जिसके अनुसार इसकी शासी संस्था, स्थाई समिति का गठन किया जा सकेगा। यह सम्मेलन के प्रशासन का तत्काल कार्यभार भी लेगी। जब स्थाई समिति का गठन हो जो जाएगा, तो वह सम्मेलन को चलाने की जिम्मेदारी लेगी ओर फिर अंतरिम बोर्ड स्वत: ही भंग हो जोएगा। देखें यूपी गजट असाधारण, दिनांक 7 अप्रैल, 1956।
