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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Saturday May 31, 06:14 by lovelesh shrivatri


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मैं जी भरकर बरसना चाहता हूं। मगर जो देख रहा हूं उससे तनिक निराश हूं उदास हूं। अपने आसमां से प्रदेश की धरती को निहारता हूं तो शहर, कस्‍बे, गांव हर कहीं सीमेंट का जंगल दिखता है। यही वजह है थोड़ी ठिठक रहा हूं। मेरा आचमन करने वाली धरती पर सड़कों, हमारतों, मकनों का जंजाल तो खूब दिखता हैं, मगर हरियाली तो मानो लुट सी गई है। सुबे के असंख्‍य इलाके बयां कर रहे है कि यहां इंसानों की हरियाली से भयंकर जंग चल रही है। मशीनों की मदद से इंसान हरियाली को नेस्‍तनाबूत कर रहा है। मुझे तो लगता हैं, जहां आबादी है, वहां हरियाली की बर्बादी है। सवाल है कि मैं बरसूं कैसे, मेरा आचमन करने वाली धरती और पेड़ दिख ही नहीं रहे। सब कुछ सीमेंट ने ढंक सा दिया है। मगर मन में ख्‍याल आता है, मनुष्‍यों ने धरती के प्रति अपना धर्म त्‍याग दिया मगर मैं तो अधर्मी नहीं हो सकता। बरसना मेरा धर्म, मेरा कर्म है। मैं अपने धर्म मार्ग से सूबे की सूरत बदल सकता हूं। बस लोग थोड़ा मेरा साथ दे। थोड़ा मेरा साथ ले। करना इतना ही है कि हर शख्‍स एक पौधा ले और उसे जमीन से जाड़ दे, बाकी मुझ पर छोड़ दे।  
इस मौसम में मैं उसे सीचूंगा और जड़ों को धरती से एकाकार करवा दूंगा। आप बस पौधे को मेरे जाने के बाद दोबारा आने तक बच्‍चे की तरह पालते-पोसते रहना। वह बड़ा होगा तो सूरज के ताप से लड़ लेगा। कालांतर में छांव देगा, फल देगा और परिंदो को घर भी देगा। फिर देखना मैं आसमान में ठिठकूंगा नहीं, जैसे ही हरित प्रदेश दिखेगा मैं इसी आसमां में रूक जाऊंगा, खूब लाड़ लडाऊंगा बारिशे लाऊंगा। आपकी हर मांग पूरी करूंगा, आप बस एक छोटी सी बात मान लें। पौधा लें, पूरे मन से रोपे। आओ संकल्‍प लें कि धर्म स्‍थलों, बगीचों, स्‍कूल-कॉलेज, अस्‍पताओं धर्मशालाओं और सड़को के किनारों को हरियाली से खुशहाल बना देगे।    

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