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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Wednesday May 28, 06:56 by lucky shrivatri
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कूटनीतिक मामलों में खेलों को प्रभावशाली हथियार समझा जाता रहा है। लेकिन जब खेल के पीछे रक्तरंजित षड्यंत्र छिपे हों तो क्रिकेट का बल्ला भी प्रतिकार का प्रतीक बन जाता है। भारत की क्रिकेट डिप्लोमेसी ने यही कर दिखाया है। बीसीसीआइ के इस निर्णय को कि भारत अब आइसीसी टूर्नामेंट के ग्रुप चरण में पाकिस्तान से नहीं खेलेगा, एक खेल नियंत्रक संस्थान का रूख ही नहीं, बल्कि राष्ट्र की नैतिक उद्घोषणा ही कहा जाना चाहिए।
यह निर्णय उस शंखनाद के समान है जो युद्ध से पूर्व नहीं, बल्कि शांति की स्थापना में बांधक लोगों को जवाब के लिए किया जाता है। ऐसा इसलिए भी उचित है क्योंकि पाकिस्तान की धरती पर उपजे आतंक रूपी नाग को हथियारों से ही नहीं, आर्थिक स्त्रोतों पर पाबंदी से भी कुचलता जरूरी है। वस्तुत: भारत ने क्रिकेट के खेल को उस चाबुक के रूप में उठाया है, जो दुश्मन की चालों पर सटीक प्रहार करता है, बिना बारूद के बिना खून के। यह कदम बताता हैं कि भारत अब सिर्फ सीमाओं पर नहीं, दूसरे मंचों पर भी पाकिस्थान को निर्णायक जवाब देने का ऐलान कर रहा है। भारत-पाक के बीच क्रिकेट मुकाबले उस जलसे की तरह होते रहे हैं जहां हार-जीत पर करोड़ों लोगों की टिकी होती है, लेकिन जब उस जलसे की रोशनी से आतंक की परछाइयां लंबी होने लगें, तब दीपक बुझा देना ही विवेक है। बीसीसीआइ का निर्णय यही विवेक हैं, जो राष्ट्रहित को हर रोमांच से सदैव ऊपर रखता है। भारत ने बता दिया है कि वह अब बाउंड़ी की नहीं, सीमा की सोचता है। जब सीमा पर खून बह रहा हो, तब खेल के नाम पर तालियां नहीं बल्कि करारे जवाब की गुंज होनी चाहिए। भारत की यह क्रिकेट डिप्लोमेसी आतंक के खिलाफ मुखर विरोध है। बीसीसीआइ का यह निर्णय पाकिस्तान के क्रिकेट बोर्ड को ही नहीं, बल्कि उसकी सरकार को भी सीधा आर्थिक झटका देगा। भारत से होने वाले हर मैच की कमाई पाक के लिए लाखों डॉलर का लाभ लेकर आती है, जो सीधे या परोक्ष रूप से आतंक के वित्तपोषण में सहयोग करता है।
अब जब भारत ने यह राजस्व स्त्रोंत रोकने की दिशा में कदम उठाया है, तो यह आतंक की जड़ों पर वार करने जैसा है। खेल वहा भाषा है, जिसे पूरी दुनिया समझती है। भारत ने इस भाषा को न्याय और जवाबदेही का स्वर दिया है।
यह निर्णय उस शंखनाद के समान है जो युद्ध से पूर्व नहीं, बल्कि शांति की स्थापना में बांधक लोगों को जवाब के लिए किया जाता है। ऐसा इसलिए भी उचित है क्योंकि पाकिस्तान की धरती पर उपजे आतंक रूपी नाग को हथियारों से ही नहीं, आर्थिक स्त्रोतों पर पाबंदी से भी कुचलता जरूरी है। वस्तुत: भारत ने क्रिकेट के खेल को उस चाबुक के रूप में उठाया है, जो दुश्मन की चालों पर सटीक प्रहार करता है, बिना बारूद के बिना खून के। यह कदम बताता हैं कि भारत अब सिर्फ सीमाओं पर नहीं, दूसरे मंचों पर भी पाकिस्थान को निर्णायक जवाब देने का ऐलान कर रहा है। भारत-पाक के बीच क्रिकेट मुकाबले उस जलसे की तरह होते रहे हैं जहां हार-जीत पर करोड़ों लोगों की टिकी होती है, लेकिन जब उस जलसे की रोशनी से आतंक की परछाइयां लंबी होने लगें, तब दीपक बुझा देना ही विवेक है। बीसीसीआइ का निर्णय यही विवेक हैं, जो राष्ट्रहित को हर रोमांच से सदैव ऊपर रखता है। भारत ने बता दिया है कि वह अब बाउंड़ी की नहीं, सीमा की सोचता है। जब सीमा पर खून बह रहा हो, तब खेल के नाम पर तालियां नहीं बल्कि करारे जवाब की गुंज होनी चाहिए। भारत की यह क्रिकेट डिप्लोमेसी आतंक के खिलाफ मुखर विरोध है। बीसीसीआइ का यह निर्णय पाकिस्तान के क्रिकेट बोर्ड को ही नहीं, बल्कि उसकी सरकार को भी सीधा आर्थिक झटका देगा। भारत से होने वाले हर मैच की कमाई पाक के लिए लाखों डॉलर का लाभ लेकर आती है, जो सीधे या परोक्ष रूप से आतंक के वित्तपोषण में सहयोग करता है।
अब जब भारत ने यह राजस्व स्त्रोंत रोकने की दिशा में कदम उठाया है, तो यह आतंक की जड़ों पर वार करने जैसा है। खेल वहा भाषा है, जिसे पूरी दुनिया समझती है। भारत ने इस भाषा को न्याय और जवाबदेही का स्वर दिया है।
