Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Tuesday May 27, 05:35 by Sai computer typing
2
428 words
172 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
saving score / loading statistics ...
00:00
जीवन के आखिरी पड़ाव में बुजुर्ग माता-पिता को अपनी ही संतानों से उपेक्षा का बर्ताव झेलना पड़े तो समाज के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक बात नहीं हो सकती। चिंता की बात यह है कि अपनी ही संतानों द्वारा सताए जाने के मामले अब बड़ी संख्या में अदालतों की चौखट तक भी पहुंचने लगे है। बुजुर्गो की उपेक्षा से जुड़े ऐसे ही एक मामले में पटना हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि सिर्फ रिश्ते के आधार पर ही बेटे को अपने पिता के स्वामित्व वाली प्रॉपटी में रहने का दावा करने का अधिकार नहीं है। मकान पर जबरन कब्जा करने वाले बेटे को कोर्ट ने बुजुर्ग माता-पिता को मासिक किराया देने का आदेश दिया है।
एक बारगी इस तरह के मामलों को परिवारों में संपत्ति विवाद से जोड़ कर देखा जा सकता है। लेकिन जिम्मेदारी से दूर भागती संतानें जब अपने माता-पिता से ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण बर्ताव करती है तो यह हमारे छिन्न-भिन्न होते सामाजिक ताने-बाने की ओर ही संकेत करता है। यह तो एक बानमी है, देश भर में बड़ी संख्या में बुजुर्गो को अपने ही निकट परिजनों की उपेक्षा झेलने को बजबूर होना पड़ रहा है। संपत्ति विवाद के चलते बड़ी संख्या में मामले अदालतों में पहुंचने लगे है। भारतीय सामाजिक व्यवस्था में संयुक्त परिवार का प्रमुख स्थान रहा है, लेकिन बदलते परिवेश में संयुक्त परिवार टूटते जा रहे है। एकल परिवार की अवधारणा और मजबूत होने लगी है। चिंता की बात तब अधिक होती है जब संताने संपत्ति हड़पने के लिए माता-पिता को उनके ही घर से बेदखल करने पर उतारू हो जाती है। प्रॉपटी विवाद ही नहीं, परिवारों में अन्य कारणों से भी बुजुर्ग अलग-थलग होते जा रहे है। देखा जा रहा है कि बड़ी संख्या में परिवारों में अपनी उपेक्षा के कारण माता-पिता एकाकी जीवन बिताने लगे है। परिवार बिखर रहे है तो इसका सबसे ज्यादा असर घर के बुजुर्ग सदस्यों पर पड़ रहा है। उन्हें बोझ समझा जाने लगा है। भारत में वृद्धाश्रमों की बढ़ रही संख्या भी उपेक्षा के इस माहौल की गंभीरता बताने को काफी है। जिस तरह बुजुर्ग माता-पिता को अलग-थलग करने को लेकर मामले अदालतों में पहुंच रहे है उससे लगता है कि बुजुर्गो को संरक्षण देने संबंधी कानून और सख्त करने की जरूरत है।
सबसे बड़ी बात यह है कि उम्र के आखिरी दौर में बुजुर्गो को आर्थिक संरक्षण की ज्यादा जरूरत पड़ती है, खास तौर से बीमारी के दौर में। ऐसे में बच्चे अपने माता-पिता की अनदेखी करने लगे तो जरूरत इस बात की है कि सरकार बुजुर्गो को संरक्षण देने संबंधी कानून के नख-दंत और तीखे करे, ताकि बुजुर्गो का जीवन सहज और आरामदायक हो सके।
एक बारगी इस तरह के मामलों को परिवारों में संपत्ति विवाद से जोड़ कर देखा जा सकता है। लेकिन जिम्मेदारी से दूर भागती संतानें जब अपने माता-पिता से ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण बर्ताव करती है तो यह हमारे छिन्न-भिन्न होते सामाजिक ताने-बाने की ओर ही संकेत करता है। यह तो एक बानमी है, देश भर में बड़ी संख्या में बुजुर्गो को अपने ही निकट परिजनों की उपेक्षा झेलने को बजबूर होना पड़ रहा है। संपत्ति विवाद के चलते बड़ी संख्या में मामले अदालतों में पहुंचने लगे है। भारतीय सामाजिक व्यवस्था में संयुक्त परिवार का प्रमुख स्थान रहा है, लेकिन बदलते परिवेश में संयुक्त परिवार टूटते जा रहे है। एकल परिवार की अवधारणा और मजबूत होने लगी है। चिंता की बात तब अधिक होती है जब संताने संपत्ति हड़पने के लिए माता-पिता को उनके ही घर से बेदखल करने पर उतारू हो जाती है। प्रॉपटी विवाद ही नहीं, परिवारों में अन्य कारणों से भी बुजुर्ग अलग-थलग होते जा रहे है। देखा जा रहा है कि बड़ी संख्या में परिवारों में अपनी उपेक्षा के कारण माता-पिता एकाकी जीवन बिताने लगे है। परिवार बिखर रहे है तो इसका सबसे ज्यादा असर घर के बुजुर्ग सदस्यों पर पड़ रहा है। उन्हें बोझ समझा जाने लगा है। भारत में वृद्धाश्रमों की बढ़ रही संख्या भी उपेक्षा के इस माहौल की गंभीरता बताने को काफी है। जिस तरह बुजुर्ग माता-पिता को अलग-थलग करने को लेकर मामले अदालतों में पहुंच रहे है उससे लगता है कि बुजुर्गो को संरक्षण देने संबंधी कानून और सख्त करने की जरूरत है।
सबसे बड़ी बात यह है कि उम्र के आखिरी दौर में बुजुर्गो को आर्थिक संरक्षण की ज्यादा जरूरत पड़ती है, खास तौर से बीमारी के दौर में। ऐसे में बच्चे अपने माता-पिता की अनदेखी करने लगे तो जरूरत इस बात की है कि सरकार बुजुर्गो को संरक्षण देने संबंधी कानून के नख-दंत और तीखे करे, ताकि बुजुर्गो का जीवन सहज और आरामदायक हो सके।
