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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created May 23rd, 05:30 by Jyotishrivatri
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तकलाकोट तिब्बत का एक छोटा-सा शहर था, जहां के होटल में मुझे अपना अलग कमरा मिला। शाम को बाजार घूमा। दूसरे दिन निकलने से पहले नहा लिया, क्योंकि आगे की यात्रा में मानसरोवर की डुबकी के बाद नहाने की मनाही थी। मानसरोवर का सफर लगभग ढाई घंटे का था। वहां पहुंचने से एक घंटा पहले हमने दूर से कैलाश पर्वत की एक झलक देखी। यहां पर बने कुंड को राक्षस ताल या रावण ताल कहा जाता है। माना जाता है शिवभक्त रावण ने यहां कठोर तपस्या की थी। फिर हम पहुंचे सीधे मानसरोवर। नीले पानी की ऐसी सुदंर झील कि देखते ही रहें। इसका जिक्र पहली बार एक ईसाई यात्री ने कुछ योगियों के सुनाए हुए किस्सों के आधार पर 16वीं सदी में किया था। जैसे-तैसे साहस जुटाया, एक डुबकी लगाई और पहुंच गये ठहरने की जगह पर जो एक बौद्ध मठ का अतिथि गृह था। शाम को एक हवन में भाग लिया। अगले दिन बस से यमद्वार पहुंचे जिसके आगे था 12 किलोमीटर का डेरापुक तक का कठिन सफर। मुझे कैमरा पकड़ने के लिए एक शेरपा मिल गया। उसका नाम था पदम। पथरीली पगडंडी थी, जिस पर पांव रखो कहीं और पड़ें कहीं। चारों ओर वीराने पहाड़ और हम सारे दिन चले, कुछ चढ़े, कुछ उतरे, कुछ बैठे और कुछ सुस्ताए। खैर हमने जब कैलाश का उत्तरी छोर देखा तो सारी थकान छुमंतर हो गई। महिला मंडली को एक कमरा मिला जिसकी खिड़की से आप एकटक कैलाश को देख सकते थे। सुबह तीन बजे उठ कर हम चरण स्पर्श की यात्रा पर निकल पड़े। घुप अंधेरा कि हाथ को हाथ न सूझे। सूर्योदय के साथ जान में जान आई। कोई भी रास्ता आसान नहीं। वजह, ऑक्सीजन की कमी। हम सुबह उस ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन का स्तर नापा जाता, जिसका नाम अब कोरोना के चलते सब को पता पड़ गया है। हमने कैलाश की सतह को स्पर्श किया और सिर पर लगाया। लौटने पर खास प्रशिक्षण दिया गया, वह भी सीढी पर खड़े-खड़े चंद मिनटों में। यह था झूमर तकनीक का, जिससे रस्सी पकड़ कर आप पहाड़ी के ऊपर जाते हैं। प्रशिक्षण पाकर हम तैयार थे, ऐसा एजेंट का मानना था और शायद हमारा भी! दूसरे दिन हम शिव स्थल और कुबेर कुंड के लिए निकले। घंटों की चढ़ाई के बाद भी हम रस्सी के दूसरे छोर से बहुत दूर थे। कड़ाके की सर्दी और अचानक बर्फीला तूफान। रस्सी के दूसरे छोर तक पहुंचते पहुंचते घाटी के किनारे तक ऐसे जगह पहुंचे जहां लगा कि इधर कुआं उधर खाई। अचानक पदम ने मझसे कहा, मैडम आप इस पत्थर पर बैठो। मैं नीचे जा रहा हूं। ऑस्ट्रेलिया वाली मैडम नीचे फिसल गई है, वहां एक और आदमी की जरूरत है। जब तक वह वापस नहीं आया, मेरी जान पर बनी रहीं। न जाने कैसे उन शरपाओं के सहारे हम शिव स्थल पहुंचे, और फिर शिव कृपा से कुबेर कुंड। तूफान की गति और मार बरकार थी। घंटो बाद तूफान थमा, सूरज निकला। हमें तो अब भी घंटों और चलना था।
