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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created May 10th, 05:06 by lovelesh shrivatri
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एक ऋषि की कुटीर में उसके साथ शिष्य रहते थे। सभी अपने गुरू की आज्ञा का पालन अच्छे से करते थे। उनमें एक शिष्य ऐसा था जो हर कार्य को समय पर करता था और अन्य शिष्यों की अपेक्षा अधिक साफ-सुथरा और अच्छे से रहता था। उसके गुरू उसकी इस आदत से बहुत खुश थे। लेकिन वह शिष्य और शिष्यों के प्रति बहुत अधिक ईर्ष्या की भावना रखता था। वह नहीं चाहता था कि और कोई भी शिष्य उससे आगे निकले। यह बात गुरू को पता तो थी लेकिन वह उसे समझाने का उपाय सोच रहे थे। एक दिन उन्होंने अपने सभी शिष्यों से कहा कि आज से वे उनके लिए खाना बनाएंगे, उनके बर्तन साफ करेगे। सभी शिष्य एक ही स्वर में बोले, लेकिन गुरूजी ऐसा क्यो? उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया। वह प्रतिदिन जब बर्तन साफ करते तो उनको बाहर से तो खूब चमकाकर साफ करते लेकिन अंदर से ढंग से साफ नहीं करते थे। आखिर एक दिन उस शिष्य ने गुरूजी से कहा, गुरूजी अगर आप ऊपर से बर्तन अच्छे से साफ करेंगे और भीतर से नहीं तो हम सब बीमार पड़ जाएंगे।
गुरू जी बोले, बेटा तुम्हें यह बात समझ आ गई कि सिर्फ शरीर को ऊपर से साफ-सुथरा रखने से कुछ नहीं होगा। हमारे भीतर भी उतनी ही स्वच्छता हमारे विचारों में होनी चाहिए ताकि हम दिमागी रूप से बीमार नहीं पड़े। यह सुन वह शिष्य सब समझ गया और उसने उस दिन से द्वेष की भावना को त्याग दिया और स्वच्छ विचारों को अपना लिया।
गुरू जी बोले, बेटा तुम्हें यह बात समझ आ गई कि सिर्फ शरीर को ऊपर से साफ-सुथरा रखने से कुछ नहीं होगा। हमारे भीतर भी उतनी ही स्वच्छता हमारे विचारों में होनी चाहिए ताकि हम दिमागी रूप से बीमार नहीं पड़े। यह सुन वह शिष्य सब समझ गया और उसने उस दिन से द्वेष की भावना को त्याग दिया और स्वच्छ विचारों को अपना लिया।
