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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Apr 30th, 11:32 by Jyotishrivatri
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बहुत समय पहले हिमालय की तराई में एक शांत और निर्जन आश्रम था, जहां ऋषि वसु नामक एक ज्ञानी महात्मा तपस्या करते थे। एक दिन एक युवा राजकुमार जीवन की व्यग्रता से थकाहारा, उनके समक्ष उपस्थित हुआ। उसने विनयपूर्वक कहा, गुरूदेव मेरा मन व्याकुल रहता है। न निद्रा मिलती है न शांति। कृपया मुझे समाधान दें। ऋषि वसु मुस्कुराए और राजकुमार को एक जल से भरा पात्र देते हुए बोले, यह पात्र लेकर पास के उस सरोवर तक जाओ और उसमें यह जल उडे़ल दो, फिर मौन रहकर वहीं बैठो। राजकुमार ने वैसा ही किया। सरोवर का जल कुछ क्षणों को हलचल में आया, पर धीरे-धीरे वह फिर से शांत हो गया। कुछ समय बाद ऋषि वसु वहां पहुंचे और बोले, राजकुमार क्या देखा? राजकुमार बोला, गुरूदेव जैसे ही जल डाला लहरें उठी, पर कुछ ही देर में सरोवर पुन: शांत हो गया। ऋषि बोले, यही तुमहारे मन की कथा है। जब तक तुम व्यग्रता, लोभ, क्रोध और मोह का जल उसमें उडेलते रहोगे, वह अशांत रहेगा। किंतु यदि तुम उसे बिना किसी हस्तक्षेप के केवल देखने का अभ्यास करो तो वह अपने आप शांत हो जाएगा। मन को सिर्फ देखो, उसमें उलझो मत। समय के साथ राजकुमार का चंचल मन सरोवर-सा शांत हो गया।
शिक्षा- सच में शांति बाहरी वस्तु नहीं, वह हमारे भीतर है।
शिक्षा- सच में शांति बाहरी वस्तु नहीं, वह हमारे भीतर है।
