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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Apr 22nd, 05:13 by lucky shrivatri
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डॉक्टरों का समय पर अस्पताल नहीं पहुचना सिर्फ मरीजों के लिए नही, पूरी स्वास्थ्य प्रणाली के लिए गंभीर समस्या बना हुआ है। देश के मेडिकल कॉलेज भी शिक्षक डॉक्टरों की लेटलतीफी से जझ रहे है। समस्या के निदान के तौर पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग एनएमसी ने फेस आधारित प्रमाणीकरण ऐप के जरिए सराहनीय पहल की है। एक मई से सभी मेडिकल कॉलेजों के शिक्षकों और डॉक्टर की हाजिरी इस ऐप के जरिए दर्ज की जायेगी। डॉक्टरों को सेल्फी के साथ जीपीएस लोकेशन भी देनी होगी। इससे हाजिरी में पारदर्शिता आएगी। यह भी सुनिश्ति होगा कि ड्यूटी के समय शिक्षक और डाक्टर कॉलेज परिसर में है।
मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में डॉक्टरों की हाजिरी को लेकर अब तक मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की वाली हालत रही है। कुछ साल पहले शुरू की गई फिंगरप्रिंट आधारित प्रणाली (बायोमेट्रिक) के बाद भी समस्या जस की तस रही। शिकायतें बढ़ रही थीं, कि कुछ मेडिकल कॉलेजों में डुप्लीकेट से ऐसी धोखाधड़ी पर रोक लगाई जा सकेगी। यह शिकायत भी थी कि कुछ मेडिकल कॉलेजों के शिक्षक ड्यूटी के समय निजी प्रक्टिस में व्यस्त रहते है। इससे कॉलेजों में पढ़ाई पर असर पड़ रहा था। विद्यार्थियों की उपस्थिति भी घट रही थी। एनएमसी ने ड्यूटी के समय डॉक्टरों की निजी प्रक्टिस पर भी रोक लगा दी है। यह वाकई अफसोस की बात हैं कि कुछ डॉक्टरों के निजी स्वार्थो पर ज्यादा ध्यान देने से पूरी स्वास्थ्य प्रणाली को खामियाजा भुगतना पड़ता है। इन डॉक्टरों के अस्पतालों में गैर-हाजिर रहने से यह भ्रम फैलता है कि देश में डॉक्टरों में कमी है। हकीकत में ऐसा नहीं है। देश में डॉक्टरों और मरीजों का अनुपात विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्धारित मानक से बेहतर है। इस मानक के मुताबिक एक हजार पर एक डॉक्टर होना चाहिए। देश में 836 मरीजों पर एक डॉक्टर मौजूद है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि हाजिरी के नए ऐप से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा। डॉक्टरों में अनुशासन और जवाबदेही बढ़ाने की जरूरत है। ड्यूटी के प्रति लापरवाही किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में डॉक्टरों की हाजिरी को लेकर अब तक मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की वाली हालत रही है। कुछ साल पहले शुरू की गई फिंगरप्रिंट आधारित प्रणाली (बायोमेट्रिक) के बाद भी समस्या जस की तस रही। शिकायतें बढ़ रही थीं, कि कुछ मेडिकल कॉलेजों में डुप्लीकेट से ऐसी धोखाधड़ी पर रोक लगाई जा सकेगी। यह शिकायत भी थी कि कुछ मेडिकल कॉलेजों के शिक्षक ड्यूटी के समय निजी प्रक्टिस में व्यस्त रहते है। इससे कॉलेजों में पढ़ाई पर असर पड़ रहा था। विद्यार्थियों की उपस्थिति भी घट रही थी। एनएमसी ने ड्यूटी के समय डॉक्टरों की निजी प्रक्टिस पर भी रोक लगा दी है। यह वाकई अफसोस की बात हैं कि कुछ डॉक्टरों के निजी स्वार्थो पर ज्यादा ध्यान देने से पूरी स्वास्थ्य प्रणाली को खामियाजा भुगतना पड़ता है। इन डॉक्टरों के अस्पतालों में गैर-हाजिर रहने से यह भ्रम फैलता है कि देश में डॉक्टरों में कमी है। हकीकत में ऐसा नहीं है। देश में डॉक्टरों और मरीजों का अनुपात विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्धारित मानक से बेहतर है। इस मानक के मुताबिक एक हजार पर एक डॉक्टर होना चाहिए। देश में 836 मरीजों पर एक डॉक्टर मौजूद है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि हाजिरी के नए ऐप से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा। डॉक्टरों में अनुशासन और जवाबदेही बढ़ाने की जरूरत है। ड्यूटी के प्रति लापरवाही किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
