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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 ( जूनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट के न्यू बेंच प्रारंभ) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
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बहुत पुरानी बात है। एक जंगल में दो पक्के दोस्त रहते थे। एक था गीदड़ और दूसरा था ऊंट। गीदड़ काफी चालाक था और ऊंट सीधा-सा। ये दोनों दोस्त घंटों नदी के पास बैठकर अपना सुख-दुख बांटते थे। दिन गुजरते गए और उनकी दोस्ती गहरी होती गई। एक दिन किसी ने गीदड़ को बताया कि पास के खेत में पके हुए तरबूज हैं। यह सुनते ही गीदड़ का मन ललचा गया, लेकिन वो खेत नदी पार था। अब नदी को पार करके खेत तक पहुंचना उसके लिए मुश्किल था। इसलिए वो नदी पार करने की तरकीब सोचने लगा। सोचते-सोचते वो ऊंट के पास चला गया। ऊंट ने दिन के समय गीदड़ को देखकर पूछा, मित्र तुम यहां कैसे? हम तो शाम को नदी किनारे मिलने वाले थे। तब गीदड़ ने बड़ी ही चालाकी से कहा, देखों मित्र पास के ही खेत में पके तरबूज है। मैंने सुना है तरबूज बहुत मीठे है। तुम उन्हें खाकर खुश हो जाओंगे। इसलिए तुम्हें बताने चला आया। ऊंट को तरबूज काफी पंसद था। वो बोला, वाह मैं अभी गांव में जाता हूं। मैंने बहुत समय से तरबूज नहीं खाए है।
ऊंट जल्दी-जल्दी नदी पार करके खेत जाने की तैयारी करने लगा। तभी गीदड़ ने कहा, दोस्त तरबूज मुझे भी अच्छे लगते हैं, लेकिन मुझे तैरना नहीं आता है। तुम तरबूज खा लोगे, तो मुझे लगेगा कि मैंने भी खा लिए। तभी ऊंट बोला, तुम चिंता मत करो मैं तुम्हे अपनी पीठ पर बैठाकर नदी पार करवाऊंगा। फिर साथ में मिलकर तरबूज खाएंगे। ऊंट ने जैसा कहा था वैसा ही किया। खेत में पहुंच कर गीदड़ ने मन भरकर तरबूज खाए और खुश हो गया। खुशी के मारे वो जोर-जोर से आवाजे निकालने लगा। तभी ऊंट ने कहा तुम शोर मत मचाओं लेकिन वो माना नहीं।
गीदड़ की आवाज सुनकर किसान डंडे लेकर खेत के पास आ गए। गीदड़ चालाक था,इसलिए जल्दी से पेड़ों के पीछे छुप गया। ऊंट का शरीर बडा था, इसलिए वो छुप नहीं पाया। किसानों ने गुस्से के मारे उसे बहुत मारा। किसी तरह अपनी जान बचाते हुए ऊंट खेत के बाहर निकला तभी पेड़ के पीछे छुपा गीदड़ बाहर आ गया। गीदड़ को देखकर ऊंट ने गुस्से में पूछा तुम क्यों इस तरह चिल्ला रहे थे। गीदड़ ने कहा कि मुझे खाने के बाद चिल्लाने की आदत है, तभी मेरा खाना पचता है। इस जवाब को सुनकर ऊंट को और गुस्सा आ गया। नदी के पास पहुंचकर उसने अपनी पीठ गीदड़ को बैठा लिया। इधर ऊंट को मार पड़ने से मन-ही-मन गीदड़ खुश हो रहा था। उधर नदी के बीच में पहुंचकर ऊंट ने नदी में डुबकी लगानी शुरू कर दी। गीदड़ डर गया और बोलने लगा, यह क्या कर रहो हो? गुस्से में ऊंट ने कहा, मुझे कुछ खाने के बाद उसे हजम करने के लिए नदी में डुबकी मारनी पड़ती है। गीदड़ को समझ आ गया कि ऊंट उसके किए का बदला ले रहा है। बहुत मुश्किल से गीदड़ पानी से अपनी जान बचाकर नदी किनारे पहुंचा। उस दिन के बाद से गीदड़ ने कभी भी ऊंट को परेशान करने की हिम्मत नहीं की।
शिक्षा- ऊंट और गीदड़ की कहानी से यह सीख मिलती है कि चालाकी नहीं करनी चाहिए। अपनी करनी खुद पर भारी पड़ जाती है। जो जैसा करता है उसे वैसा ही भरना होता है।
ऊंट जल्दी-जल्दी नदी पार करके खेत जाने की तैयारी करने लगा। तभी गीदड़ ने कहा, दोस्त तरबूज मुझे भी अच्छे लगते हैं, लेकिन मुझे तैरना नहीं आता है। तुम तरबूज खा लोगे, तो मुझे लगेगा कि मैंने भी खा लिए। तभी ऊंट बोला, तुम चिंता मत करो मैं तुम्हे अपनी पीठ पर बैठाकर नदी पार करवाऊंगा। फिर साथ में मिलकर तरबूज खाएंगे। ऊंट ने जैसा कहा था वैसा ही किया। खेत में पहुंच कर गीदड़ ने मन भरकर तरबूज खाए और खुश हो गया। खुशी के मारे वो जोर-जोर से आवाजे निकालने लगा। तभी ऊंट ने कहा तुम शोर मत मचाओं लेकिन वो माना नहीं।
गीदड़ की आवाज सुनकर किसान डंडे लेकर खेत के पास आ गए। गीदड़ चालाक था,इसलिए जल्दी से पेड़ों के पीछे छुप गया। ऊंट का शरीर बडा था, इसलिए वो छुप नहीं पाया। किसानों ने गुस्से के मारे उसे बहुत मारा। किसी तरह अपनी जान बचाते हुए ऊंट खेत के बाहर निकला तभी पेड़ के पीछे छुपा गीदड़ बाहर आ गया। गीदड़ को देखकर ऊंट ने गुस्से में पूछा तुम क्यों इस तरह चिल्ला रहे थे। गीदड़ ने कहा कि मुझे खाने के बाद चिल्लाने की आदत है, तभी मेरा खाना पचता है। इस जवाब को सुनकर ऊंट को और गुस्सा आ गया। नदी के पास पहुंचकर उसने अपनी पीठ गीदड़ को बैठा लिया। इधर ऊंट को मार पड़ने से मन-ही-मन गीदड़ खुश हो रहा था। उधर नदी के बीच में पहुंचकर ऊंट ने नदी में डुबकी लगानी शुरू कर दी। गीदड़ डर गया और बोलने लगा, यह क्या कर रहो हो? गुस्से में ऊंट ने कहा, मुझे कुछ खाने के बाद उसे हजम करने के लिए नदी में डुबकी मारनी पड़ती है। गीदड़ को समझ आ गया कि ऊंट उसके किए का बदला ले रहा है। बहुत मुश्किल से गीदड़ पानी से अपनी जान बचाकर नदी किनारे पहुंचा। उस दिन के बाद से गीदड़ ने कभी भी ऊंट को परेशान करने की हिम्मत नहीं की।
शिक्षा- ऊंट और गीदड़ की कहानी से यह सीख मिलती है कि चालाकी नहीं करनी चाहिए। अपनी करनी खुद पर भारी पड़ जाती है। जो जैसा करता है उसे वैसा ही भरना होता है।
