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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Apr 18th, 05:33 by lovelesh shrivatri
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बाल तस्करी मानवाधिकारों के उल्लंघन का सबसे खराब रूप है। सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी से निपटने के लिए दिशा-निर्देश जारी कर स्पष्ट कर दिया हैं कि इस मामले लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी। कोर्ट ने अस्पताल से बच्चा चोरी की घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए उसका लाइसेंस तक रद्द करने का आदेश देकर जिम्मेदारी भी तय कर दी है। सच भी हैं कि तस्करी के जाल में फंसने वाले बच्चे अपने बचपन के साथ-साथ क्षमता, मानवीय गरिमा और यहां तक कि शारीरिक और मानसिक विकास से भी वंचित रह जाते हैं। बाल श्रम, भिक्षावृति, अंग तस्करी जैसी कई अवैध गतिविधियां बाल तस्करी की गोद से ही जन्म लेती है। पिछले अस्पतालों से बाल तस्करी के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इसमें अस्पतालों की लापरवाही और सुरक्षा की कमी सामने आई।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनओडीसी की एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में तनाव तस्करी के शिकार लोगों में लगभग 20 फीसदी संख्या बच्चों की होती है। हाल में दिल्ली में बाल तस्करी गिरोह के तीन जने पकड़े गए थे, जो राजस्थान और गुजरात से बच्चा चोरी कर दिल्ली में अमीर नि:संतान दंपतियों को बेचते थे। एक सभ्य समाज के लिए इससे ज्यादा शर्मिदगी की बात और क्या हो सकती हैं कि इसके लिए बाकायदा बच्चों की बोली लगाई जाती थी और सबसे अधिक कीमत लगाने वाले को बच्चा बेच दिया जाता था। इस पूरी खरीद-फरोख्त में दलालों को भी मोटा कमीशन मिलता था। बाल तस्करी के जिम्मेदार कारकों में गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा और बेरोजगारी भी एक बहुत बड़ा कारण है। गरीबी या कर्ज चुकाने के लिए कुछ माता-पिता अपने बच्चों को तस्करों के हवाले कर देते है। देश में वंचित समुदाय बाल तस्करी के लिए सबसे असुरक्षित है। इन समुदाय के बच्चों के माता-पिता को खराब आर्थिक स्थिति और बेहतर आजीविका के विकल्प के रूप में बच्चों को बेचने के लिए मजबूर किया जाता है। बच्चों की तस्करी के मामले में दूसरे पहलू को देखें तो कई नि:संतान दंपती संतान सुख के लिए अधीर है लेकिन कानूनी रूप से बच्चे को गोद लेने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। दो साल से कम उम्र के बच्चे को गोद लेने के इंतजार में चार साल तक बीत जाते है। हालांकि लंबी प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने के लिए रखी गई है कि बच्चे के सर्वोत्तम हिंतों की पूर्ति हो, लेकिन गोद लेने के लिए शिशुओं की अनुपलब्धता ऐसे अपराधों को बढ़ावा देती है।
सरकार को बाल तस्करी को रोकने के लिए गरीब उन्मूलन रोजगार जैसे मुद्दों पर तो ध्यान देना ही होगा।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनओडीसी की एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में तनाव तस्करी के शिकार लोगों में लगभग 20 फीसदी संख्या बच्चों की होती है। हाल में दिल्ली में बाल तस्करी गिरोह के तीन जने पकड़े गए थे, जो राजस्थान और गुजरात से बच्चा चोरी कर दिल्ली में अमीर नि:संतान दंपतियों को बेचते थे। एक सभ्य समाज के लिए इससे ज्यादा शर्मिदगी की बात और क्या हो सकती हैं कि इसके लिए बाकायदा बच्चों की बोली लगाई जाती थी और सबसे अधिक कीमत लगाने वाले को बच्चा बेच दिया जाता था। इस पूरी खरीद-फरोख्त में दलालों को भी मोटा कमीशन मिलता था। बाल तस्करी के जिम्मेदार कारकों में गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा और बेरोजगारी भी एक बहुत बड़ा कारण है। गरीबी या कर्ज चुकाने के लिए कुछ माता-पिता अपने बच्चों को तस्करों के हवाले कर देते है। देश में वंचित समुदाय बाल तस्करी के लिए सबसे असुरक्षित है। इन समुदाय के बच्चों के माता-पिता को खराब आर्थिक स्थिति और बेहतर आजीविका के विकल्प के रूप में बच्चों को बेचने के लिए मजबूर किया जाता है। बच्चों की तस्करी के मामले में दूसरे पहलू को देखें तो कई नि:संतान दंपती संतान सुख के लिए अधीर है लेकिन कानूनी रूप से बच्चे को गोद लेने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। दो साल से कम उम्र के बच्चे को गोद लेने के इंतजार में चार साल तक बीत जाते है। हालांकि लंबी प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने के लिए रखी गई है कि बच्चे के सर्वोत्तम हिंतों की पूर्ति हो, लेकिन गोद लेने के लिए शिशुओं की अनुपलब्धता ऐसे अपराधों को बढ़ावा देती है।
सरकार को बाल तस्करी को रोकने के लिए गरीब उन्मूलन रोजगार जैसे मुद्दों पर तो ध्यान देना ही होगा।
