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created Apr 15th, 12:52 by jindgi7717
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महाभारत की कहानी में हर कहीं श्राप और वरदान देखने को मिलते हैं। मगर आपको पता नहीं चलेगा कि कहां श्राप ही वरदान बन जाता है या वरदान कहां श्राप बन जाता है। क्योंकि चीजों को उलझा देने का जीवन का अपना तरीका होता है। एक श्राप, वरदान बन सकता है और एक वरदान, श्राप बन सकता है। तो, शर्मिंष्ठा को देवयानी की दासी बनने का श्राप मिला। इसके बाद देवयानी का विवाह ययाति से तय हुआ। उसने आग्रह किया कि शर्मिष्ठा उसकी खास दासी बनकर उसके साथ उसके ससुराल जाएगी।
देवयानी शर्मिष्ठा से अपना बदला ले चुकी थी और उसे अब बात को और तूल नहीं देना चाहिए था। मगर वह शर्मिष्ठा को और सताना चाहती थी। शादी के बाद शर्मिष्ठा दासी बनकर उसके साथ चली गई। ययाति और देवयानी पति-पत्नी के रूप में साथ रहने लगे। कुछ समय बाद उनका एक पुत्र हुआ, जिसका नाम यदु था। यादव इसी यदु के वंशज हैं।
हालांकि शर्मिष्ठा देवयानी की दासी थी, मगर राजकुमारी होने के कारण उसकी एक खास शान थी। उसने खुद को देवयानी से ज्यादा आकर्षक बना लिया। जैसा कि होना ही था, ययाति उसके प्रेम में पड़ गए।
देवयानी शर्मिष्ठा से अपना बदला ले चुकी थी और उसे अब बात को और तूल नहीं देना चाहिए था। मगर वह शर्मिष्ठा को और सताना चाहती थी। शादी के बाद शर्मिष्ठा दासी बनकर उसके साथ चली गई। ययाति और देवयानी पति-पत्नी के रूप में साथ रहने लगे। कुछ समय बाद उनका एक पुत्र हुआ, जिसका नाम यदु था। यादव इसी यदु के वंशज हैं।
हालांकि शर्मिष्ठा देवयानी की दासी थी, मगर राजकुमारी होने के कारण उसकी एक खास शान थी। उसने खुद को देवयानी से ज्यादा आकर्षक बना लिया। जैसा कि होना ही था, ययाति उसके प्रेम में पड़ गए।
