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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Apr 5th, 05:24 by lucky shrivatri
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श्री राम का संपूर्ण जीवन सिखाता है कि माता-पिता का सम्मान सर्वोपरि होना चाहिए। उनके पिता महाराज दशरथ ने उन्हें वनवास पर जाने का आदेश दिया, तब भी श्रीराम ने बिना किसी विरोध के उसे स्वीकार किया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि पुत्र का कर्तव्य हैं कि अपने माता-पिता की इच्छा का सम्मान करना चाहिए, चाहे वह निर्णय कितनी भी कठिन परिस्थिति में क्यों न हों और उस निर्णय की पालना में कितनी ही कठिनाइयां क्यों न आएं।
भगवान श्रीराम का जीवन कर्म के महत्व को स्पष्ट करता है। उन्होंने कर्तव्यों और दायित्वों से मुंह नहीं मोड़ा और हमेशा सत्य के साथ दृढ़ता से उन पर चले। उनका संदेश हैं कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा और सजगता से निभाना चाहिए। श्रीराम सत्य, धर्म और न्याय के पथ से एक कदम भी विचलित नहीं हुए। जीवन के मूल्यों का पालन करते हुए उन्होंने हर कठिनाई का सामना किया। उनके जीवन की परिस्थितियां सिखाती हैं कि उच्चतम नैतिक मानदंडोंं का पालन होना चाहिए, ताकि हर स्त्री-पुरूष समाज में श्रेष्ठ मूल्यों के साथ गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकें।
श्रीराम ने अपनी शक्ति का उपयोग हमेशा धर्म और न्याय की रक्षा के लिए किया। उन्होंने रावण को हराया लेकिन उनका युद्ध उनकी मानसिक शक्ति और शास्त्रों की नीति पर आधारित था। श्रीराम का जीवन दर्शाता हैं कि हरेक व्यक्ति के जीवन में परिवार महत्वपूर्ण है। वे परिवार के प्रति निष्ठावान रहे। परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन उनकी सर्वोत्तम प्राथमिकता थी। उन्होंने पत्नी सीता, भाई भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न, गुरू वशिष्ठ व विश्वामित्र के साथ विश्वास समर्पण और प्रेम के संबंध स्थापित किए।
श्रीराम ने हमेशा नियति को स्वीकार किया, चाहे वह वननास हो या माता सीता का अपहरण। पर वे भाग्य से निराश होकर कहीं बैठे नहीं गए, बल्कि उससे जूझते हुए उस पर विजय प्राप्त की। श्रीराम के आदर्शो को अपने जीवन में उतारकर वास्तव में श्रीरामनवमी को सच्चे रूप से मनाया जा सकता है। रामनवमी केवल उत्सव नहीं, बल्कि अपने जीवन को श्रीराम के आदर्शो से जोड़ने का एक मंगलमय अवसर है। श्रीराम का लोकोत्तर कृतित्व एक अमिट धारा है, जो सच्चे व्यक्ति को सदैव समुचित मार्गदर्शन प्रदान करता है।
भगवान श्रीराम का जीवन कर्म के महत्व को स्पष्ट करता है। उन्होंने कर्तव्यों और दायित्वों से मुंह नहीं मोड़ा और हमेशा सत्य के साथ दृढ़ता से उन पर चले। उनका संदेश हैं कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा और सजगता से निभाना चाहिए। श्रीराम सत्य, धर्म और न्याय के पथ से एक कदम भी विचलित नहीं हुए। जीवन के मूल्यों का पालन करते हुए उन्होंने हर कठिनाई का सामना किया। उनके जीवन की परिस्थितियां सिखाती हैं कि उच्चतम नैतिक मानदंडोंं का पालन होना चाहिए, ताकि हर स्त्री-पुरूष समाज में श्रेष्ठ मूल्यों के साथ गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकें।
श्रीराम ने अपनी शक्ति का उपयोग हमेशा धर्म और न्याय की रक्षा के लिए किया। उन्होंने रावण को हराया लेकिन उनका युद्ध उनकी मानसिक शक्ति और शास्त्रों की नीति पर आधारित था। श्रीराम का जीवन दर्शाता हैं कि हरेक व्यक्ति के जीवन में परिवार महत्वपूर्ण है। वे परिवार के प्रति निष्ठावान रहे। परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन उनकी सर्वोत्तम प्राथमिकता थी। उन्होंने पत्नी सीता, भाई भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न, गुरू वशिष्ठ व विश्वामित्र के साथ विश्वास समर्पण और प्रेम के संबंध स्थापित किए।
श्रीराम ने हमेशा नियति को स्वीकार किया, चाहे वह वननास हो या माता सीता का अपहरण। पर वे भाग्य से निराश होकर कहीं बैठे नहीं गए, बल्कि उससे जूझते हुए उस पर विजय प्राप्त की। श्रीराम के आदर्शो को अपने जीवन में उतारकर वास्तव में श्रीरामनवमी को सच्चे रूप से मनाया जा सकता है। रामनवमी केवल उत्सव नहीं, बल्कि अपने जीवन को श्रीराम के आदर्शो से जोड़ने का एक मंगलमय अवसर है। श्रीराम का लोकोत्तर कृतित्व एक अमिट धारा है, जो सच्चे व्यक्ति को सदैव समुचित मार्गदर्शन प्रदान करता है।
