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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Yesterday, 13:10 by lucky shrivatri


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एक बार एक शिष्‍य दिव्‍यकीर्ति की शिक्षा पूर्ण होने पर वह आश्रम छोड़कर चला गया। वह बुरी संगत में घिरकर गलत राह पर चल पड़ा। गुरूजी को जब अपने प्रिय शिष्‍य के बारे में पता लगा तो उन्‍हें बहुत दुख हुआ। गुरूजी ने किसी व्‍यक्ति के माध्‍यम से अपने शिष्‍य तक संदेश पहुंचाया कि वह आकर एक बार उनसे मिले। संदेश मिला तो शिष्‍य उनसे मिलने के लिए पहुंचा। गुरूजी इस समय तुमसे नहीं मिल पाएंगे क्‍योंकि इस वक्‍त वह अपने सच्‍चे मित्रों के साथ बैठे है। चेले ने उत्तर दिया पर दिव्‍यकीर्ति रूका नहीं और दौड़ता हुआ सीधा आश्रम के भीतर चला गयाद्य आपके चेले ने मुझसे झूठ कहा कि गुरू जी मित्रों के साथ है। पर आप तो नितांत अकेले बैठे हुए है। दिव्‍यकीर्ति ने कहा। मेरे चेले ने तुमसे गलत नहीं कहा। मैं यहां पर अकेला कहां हूं? मेरे साथ मेरे सच्‍चे और सबसे अच्‍छे मित्र मौजूद है। अच्‍छी पुस्‍तके किसी इंसान की सबसे सच्‍ची दोस्‍त होती है और इस वक्‍त मुझे अपने उन्‍हीं दोस्‍तों का सानिध्‍य मिला हुआ है। गुरूजी ने हाथ में ली पुस्‍तक शिष्‍य को दिखाते हुए कहा तो दिव्‍यकीर्ति को भूल का एहसास हुआ। वह समझ गया कि गुरू जी ने उसे यही शिक्षा देने के लिए अपने आश्रम में बुलाया था। उसने क्षमा मांगी और फिर प्रण लिया कि वह भी आगे से अपने बुरी संगत से किनारा करके सदैव अच्‍छी पुस्‍तकों को अपना मित्र समझ कर जीवन को सफल बनाएगा।  

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