eng
competition

Text Practice Mode

साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Yesterday, 07:35 by lovelesh shrivatri


0


Rating

279 words
126 completed
00:00
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में राजनीति अपराधीकरण को रोकना आज भी बड़ी चुनौती है। सुप्रीम कोर्ट आपराधिक मामलों में सजा पाने वाले राजनेताओं को चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की याचिका पर विचार कर रहा है। केंद्र सरकार ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट से कहा हैं कि अपराधी राजनेताओं को हमेशा के लिए चुनाव लड़ने से रोकना अनुचित होगा, क्‍योंकि यह अपराध के लिए ज्‍यादा कठोर सजा देने और व्‍यक्ति में सुधार की संभावना को खत्‍म करने जैसा होगा।  
केंद्र सरकार का तर्क हैं कि यदि ऐसे किसी कानूनी प्रावधान की आवश्‍यकता हैं भी तो उस पर फैसले का अधिकार संवैधानिक रूप से सिर्फ विधायिका को ही है,
 न्‍यायपालिका को नहीं। वहीं अदालत का तर्क हैं कि यदि आपराधिक पृष्ठिभूमि के लोग संसद या विधानसभाओं में पहुंचते हैं तो अपने खिलाफ कानून बनाने में उनके हितों का टकराव होगा। इस यक्ष प्रश्‍न का उत्तर खोजने का काम सर्वोच्‍च को ही करना है लेकिन अपराधियों को संसद या विधानसभाओं में पहुंचने से रोकना एक ऐसा दायित्‍व हैं जिसे सिर्फ संवैधानिक प्रावधान और कानूनी पेचीदगियों के हिसाब से ही नहीं देखना चाहिए। केंद्र सरकार का तर्क कानूनी दृष्टिकोण से समझा जा सकता हैं, लेकिन क्‍या यह नैतिक रूप से भी उचित है? निर्वाचित प्रतिनिधियों से उच्‍च नैतिक मूल्‍यों की पालना और जवाबदेही की अपेक्षा की जाती है। गंभीर आपराधिक आरोप सिद्ध होने पर किसी को भी सार्वजनिक पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं होना चाहिए। कई सरकारी नौकरियों और सेवाओं में गंभीर अपराधों में दोषी ठहराए जाने के बाद कार्मिक को बर्खास्‍त किया जा सकता है। फिर, राजनेताओं को छूट क्‍यों दी जाए। इस गंभीर प्रश्‍न पर नीति-निमाताओं और न्‍यायपालिका को विचार करना चाहिए।   

saving score / loading statistics ...