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11/1/2025 shift -1 hindi typing test

created Feb 22nd, 12:08 by 1995sanju


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महाराणा प्रताप मेवाड के राजपूत महाराजा थे। जो अब भारत में है। मुगल सम्राट अकबर के प्रयासों का सफलतापूर्वक विरोध करने के लिए और अपने क्षेत्र पर विजय हासिल करने के लिए महाराणा को नाय रूप में जाना जाता है। राणा को एक साहसी और बहादुर रण कुशल के रूप में देखा गया। महराणा नके मुगल आ्क्रमण के आगे समर्पण करने से इंकार कर दिया और जब तक अपनी भूमि और लोगों को बचाव नहीं किया आराम से नहीं बैठे। राणा ने बचपन से ही अपनी कुशलता दिखाना शुरू कर दिया था। प्रताप के भाई के विक्रम देव जगमल और सागर सिंह ने मुगल सम्राट अकबर की सेवा की। प्रताप ने खुद को मुगलों को विरोध करने के लिए तैयार किया और उसे कबूल करने के लिए मना कर दिया अकबर ने प्रताप को अपने साथ गठबंधन के लिए बातचीत करने की आस में छह राजनयिक मिशन भेजे। लेकिन प्रताप ने मुगलों की मॉंगाें को कबूल करने से इंनकार कर दिया। राजपूतों और मुगलों के बीच समर अनिवार्य बन गया। भले ही मुगल सेना राजपूत सेना से बहुत अधिक थी। महाराणा प्रताप अंत तक बहादुरी से  लडे। उनकी वर्षगाठ महाराणा प्रताप जंयती को शीर्ष धवलपक्ष  चरण के तीसरे दिन हर साल एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। महाराणा प्रताप के आविर्भाव कुंभलगढ किले में उदय सिंह और महारानी जपवंता बाई के सबसे बडे पुत्र के रूप में हुआ था। उनके पिता मेवाड राज के शासक थे। शासक के सबसे बडे बेटे के रूप में कुंवर प्रताप सिंह ने वहीं रहकर लडाई करना चाहा लेकिन  परिवार के बुजुर्ग लोगों ने राणा को भरोसा दिया कि राज को छोडना सबसे बेहतर विचार है। उदय सिंह और उनके सहयोगियों कने गोगुंडा में मेवाड के राज एक क्षणिक सरकार बनाई। फिर उदय सिंह का भी निधन हो गया और राजकुमार प्रताप सिसौदिया राजपूतों के तर्ज पर मेवाड के शासक महाराणा प्रताप के रूप में सिंहासन विराजमान हुए। उनके भाई जगमल सिंह को अपने आखिरी दिनों में अपने पिता से कुंवर ताज के रूप मे नामित किया गया था लेकिन जब से जगमल कमजोर अक्षम और पीने की आदत में पड गए। शाही अदालत के सबसे बडे लोगों ने प्रताप को राजा माना। जगमल ने बदला लेने की कसम खाई और अजमेर छोडकर अकबर की सेना में शामिल हो गए। उनकी मदद के बदले जागीर ने जाहजपुर का शहर हासिल किया। राजपूतों के शासन को छोडने के बाद मुगलों ने शहर का नियंत्रण ले लिया था। हालांकि वे मेवाड के राज को मिलाने में असमर्थ थे। अकबर पूरे भारत पर अपना शासन करना चाहता था। और कई दूतों को गठबंधन के लिए बातचीत करने के‍ लिए प्रताप के पास भेजा। अकबर ने मेवाड को छह राजनयिक मिशन भेजे। लेकिन महाराणा प्रताप ने उनमें से सभी को ठुकरा दिया। इन अंतिम अभियानों में आखिरकार अकबर भाई असफ खान और राजा मानसिंह की अगुवाई थी। शांति संधि के लिए बातचीत करने के प्रयासों में असफलता ने अकबर को नाराज किया जिससे मेवाड का अपना दावा करने के लिए रण का सहारा लिया। लेकिन प्रताप ने मुगलों से गोगुंडा काे फिर से प्राप्‍त कर लिया और कुंभलगढ कोअपनी  कागजी राजधानी बनाई।

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