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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Feb 22nd, 04:21 by rajni shrivatri
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मैंने कभी इस गांव के बारे में न पढ़ा था और न ही सुना था। अपनी लद्दाख की दूसरी यात्रा के दौरान नूब्रा में पड़ाव के दौरान मैंने अपने गाइड से कहा कि कोई ऐसी जगह ले जाए, जो उस जगहों में शामिल न हो, जहां आमतौर पर पर्यटक जाते हैं। गाइड बोला कि वह मुझे एक ऐसे गांव ले जा सकता है, जिसकी सुंदरता स्विट्जर्रलैंड को भी टक्कर दे सकती है और वहां बहुत कम ही लोग जाते है और विदेशियों को तो वहां जाने के लिए अनुमति लेनी होती है। खैर, गाइड साहब ने तो स्विट्जरलैंड नहीं देखा था, पर उनका विश्वास गजब का था। यह जानने के बाद भी कि यात्रा में आठ घंटे आने-जाने में लगेंगे, मेरा यायावर मन वहां जाने का निर्णय ले चुका था। हम बहुत सवेरे ही निकल पड़े। रास्ता ऊबड़-खाबड़ भी था, पर बेहर खूबसूरत। जब हरियाली, बड़े पेड़ और नीचे तैरते बादल दूर से अचानक नजर आते, तो गाइड चुप्पी तोड़ कर पूछता, क्यों मैडम, है ना हमारा तुरतुक स्विट्जरलैंड से ज्यादा खूबसूरत? अचानक हरियाली से घिरा वह गांव भी आ जाता है। इस छोटे से गांव का थोड़ा-इधर थोड़ा-उधर होने का इतिहास हमें सन् उन्नीस सौ इकहत्तर के दिसम्बर महीने में ले जाता है, जब आठ से चौदह तारीख तक तुरतुक का वह युद्ध लड़ा गया था, जिसमें भारतीय सेना ने तुरतुक के इधर वाले हिस्से को अपने अधिकार में वापस ले लिया था, पर आधा हिस्सा अब भी पाक अधिकृत कश्मीर में है। तुरतुक बाल्टिस्तान क्षेंत्र में है। जो कभी एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था। वहां अलग जनजातियों और वंशों ने राज किया, जिनमें से प्रमुख रहा यागबू जो मध्य एशिया से आया और लगभग एक हजार साल तक राज किया। गौरतलब है कि एक समय में ये पूरा इलाका सिल्क रूट का महत्वपूर्ण हिस्सा और बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। इस्लाम यहां ईरान के सूफी प्रचारक सैयद अली शाह हमदानी के साथ आया। आज भी यहां के कई लोग नूरबकशिया संप्रदाय से जुडे हैं, जबकि शिया और सुन्नी विचारधारा के कारण परिवर्तन उन्नीसवीं सदी से हुआ। अठारह सौ चौंतीस में महाराजा गुलाब सिंह ने इसे अपने अधिकार में लिया। इतना सब इतिहास कुछ गाइड से तो तुरतुक के राजा याबगोमोहम्मद खान काचो से जाना। राजा तो कभी कुआ करते थे, पर अब वो उस पूर्व राज परिवार के वशंज है, जिसने कभी शान-शोकत से भरपूर समय देखा था। उनका निवास जो नाम मात्र के लिए राजनिवास कहलाता है और वही हाल उनके संग्रहालय का है। हां, उस तीन सौ के करीब घर और चार हजार की आबादी वाले गांव में उनका घर ऊंचाई पर है, वस उतनी से शान जो दिखती है। बाकी उनकी बोली और आंखों से झलकती है, जो गुजरे जमाने की दास्तां सुना रही थी। मैं वहां के छोटे बच्चों के गोरे चेहरे और उनकी भूरी आंखे अब भी नहीं भूली। वाकई तुरतुक अपने आप में कुदरत की सौगात है, वहां उसकी अपनी रूह के लिए पहुंचना चाहिए, ना कि स्विट्जरलैंड याद करने के लिए।
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