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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤ आपकी सफलता हमारा ध्‍येय ✤|•༻

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हमारी पसंद समय के साथ बदलती रहती है। हर जगह यह नियम काम करता है। बचपन में हमें कुछ और पसंद होता है जैसे जैसे बडे होते हैं हमारी पसंद भी बदल जाती है। बहुत से छात्रों को प्राइमरी कक्षा में कुछ खास विषय ही पसंद होते है पर बडे होने पर वे अपनी मानसिक क्षमता और रूचि के अनुसार विषय बदल लेते हैं। प्री प्राइमरी में औसतन सभी छात्रों को ड्राइंग पसंद होता है मुझे भी पसंद था। प्राइमरी तक आते आते मेरा मन ड्राइंग से उचट गया। प्राइमरी में खेल खेल में गिनती पहाडा सीखते सीखते गणित से लगाव हो गया। जब कक्षा में दस तक की गिनती सिखाई जाती थी मेरी मां ने मुझे पचास तक गिनती सिखा देती थी। मेरी मां मुझे घर का काम करते करते गिनती सिखाती थी। इसी तरीके से मेरी मां ने मुझे जोड घटाना बडी आसानी से सीखा दिया था। जहां दूसरे छात्रों को जोडने घटाने में परेशानी होती थी वहीं मैं बडी आसानी से कर लेती थी। गणित में मेरी रूचि को देखकर मेरी मां ने मेरा दाखिला अबेकस कक्षा में करवा दिया। मुझे अबेकस की मदद से सवाल लगाने में मजा आता था अबेकस ने मुझे गणित समझाने में मदद की साथ ही साथ मेरे ज्ञान को बढाने में भी। गणित में मेरा रूझान मेरे भाई के कारण भी है। वे दिनभर गणित लगाते रहते जिस कारण मैं भी उनकी नकल करने बैठ जाती और देखते ही देखते मैंने कठिन सवाल लगाना सीख लिया। धीरे धीरे कक्षा में मेरा प्रदर्शन बेहतर होता गया मुझे गणित में पूरे नंबर मिलते। जिस कारण मैं पूरे जोश में रहती और मेहनत करती। अब मुझे कठिन कठिन सवालों को करना बढिया लगता था। मैथ ओलंपियाड में मैने भाग लिया और शानदार अंक भी हासिल किए। यहां बढिया प्रदर्शन करने के कारण अब मुझे पाठशाला की तरफ से अंतर पाठशाला मैथ ओलंपियाड में भी भेजा जाने लगा। मेरे बहुत से सहपाठी मुझसे गणित के सवाल पूछने आते। कई तो मेरे पास कठिन सवाल सीखने भी आते। चूंकि में गणित में बेहतर थी मेरे नाम की सिफारिश अलग अलग गणितीय प्रतियोगिताओं में की जाने लगी परंतु मेरा मन एक नई भाषा सीखने को आतूर हो उठा जब मेरी पाठशाला मे विदेशी भाषा का भी विभाग खुला। नई चीजों को सीखने का एक अलग ही रोमांच होता है मेरे अंदर भी था। हमें अग्रेजी और फ्रेंच को तीसरी भाषा के रूप में चुन लिया। मैंने अपने इस फैसले को सही साबित करने के लिए खूब मेहनत की। इसमें मेरी फ्रेंच टीचर ने मदद की और हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन किया। वे हमे बडी ही सरल भाषा में सिखाती थी बडे ही आकर्षक तरीके से सब कुद बताती थी। मेरे मां पापा को डर था कि कहीं नयी भाषा के कारण मेरे अंक खराब हो जाए उनका डर वाजिब भी था।  
    उस साल मेरे साथ फ्रेंच लेने वाले तमाम छात्र फेल हो गए थे। पर मेरी बढिया रैकिंग देखकर उनका यह डर भी चला गया। बेशक मेरा पसंदीदा विषय गणित है पर मुझे फ्रेंच भी उतना ही पसंद है। मैंने सोच लिया है आगे की पढाई भी इसी में करूंगी और इसी में अपनी करियर बनाउंगी।  

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