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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Feb 12th, 08:57 by lucky shrivatri
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दहेज उत्पीड़न और हिंसा से जुड़े प्रकरणों में सुप्रीम कोर्ट ने पीडिता को परेशान करने को लेकर आरोपी के पिरजनों को बेवजह घसीटने पर वाजिब चिंता जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही एक मामले की सुनवाई के दौरान यह साफ कहा है कि ऐसे मामलों में आरोपी के परिजनों को सिर्फ इस आधार पर ही आपराधिक मामलों में नहीं फंसाया जाना चाहिए कि वे पीडिता का साथ देने के बजाय उस पर होने वाले अत्याचारों को देखते रहे। अदालत ने यह भी कहा है कि ऐसे मामलों में अपराध में स्पष्ट रूप से संलिप्तता और उकसावे के संकेत जरूरी है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि महिला उत्पीड़न और उसमें भागीदार बनने वालों को सजा दी जानी चाहिए। लेकिन, ऐसी घटनाएं भी सामने आती रही है, जिसमें दहेज को लेकर उत्पीड़न और हत्या तक के मामलों में आरोपी के ऐसे रिश्तेदारों पर भी आपराधिक मामले दर्ज हो जाते है, जिनका संबंधित अपराध से दूर-दूर का वास्ता नहीं होता। इनमें वे नजदीकी रिश्तेदार भी होते हैं जो न तो आरोपी पक्ष के साथ रहते है ओर न ही किसी तरह के उकसावे की बात सामने आती। यह भी एक तथ्य है कि कई बार यह अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है कि महिला उत्पीड़न के मामलों में कौन दोषी है और कौन बिना वजह ही फंसाया जा रहा है। निर्दोष व्यक्ति पुलिस व अदालतों की कार्यवाही का सामना करने के बाद बरी हो भी जाता है तो भी उसके लिए उत्पीड़न को लेकर लगे कलंक को धोना आसान नहीं होता। धारा 498 ए पर अक्सर सवाल उठते रहे है। एक वर्ग लगातारर यह आरोप लगाता रहता है कि इसका इस्तेमाल कई महिलाएं पति और ससुराल वालों को आपराधिक मामलों में फंसाने के लिए करती है। सुप्रीम कोर्ट भी कई बार कह चुका हैं कि खासतौर से दहेज उत्पीड़न के मामलों में सावधानी बरतने की जरूरत है। यह इसलिए भी जरूरी है ताकि कोई कानून का दुरूपयोग नही कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसले में भी यही कहा हैं कि परिवार के सदस्य कई मामलों में पीडि़त के साथ हिंसा की अनदेखी कर रहे हो तो इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि वे भी घरेलू हिंसा के अपराधी है।
समस्या यह है कि कोई महिला थाने जाकर यह कह दे कि उसके साथ पति व ससुराल के लोग क्रूरता कर रहे हैं, तो उन सभी के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाता है। इससे कई बार निर्दोष लोग भी कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते नजर आते है। इसमें शक नहीं हैं कि महिलाओं को उत्पीड़न से बचाना चाहिए, लेकिन इस प्रक्रिया में निर्दोषो का उत्पीड़न नहीं होना चाहिए।
इसमें कोई संदेह नहीं कि महिला उत्पीड़न और उसमें भागीदार बनने वालों को सजा दी जानी चाहिए। लेकिन, ऐसी घटनाएं भी सामने आती रही है, जिसमें दहेज को लेकर उत्पीड़न और हत्या तक के मामलों में आरोपी के ऐसे रिश्तेदारों पर भी आपराधिक मामले दर्ज हो जाते है, जिनका संबंधित अपराध से दूर-दूर का वास्ता नहीं होता। इनमें वे नजदीकी रिश्तेदार भी होते हैं जो न तो आरोपी पक्ष के साथ रहते है ओर न ही किसी तरह के उकसावे की बात सामने आती। यह भी एक तथ्य है कि कई बार यह अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है कि महिला उत्पीड़न के मामलों में कौन दोषी है और कौन बिना वजह ही फंसाया जा रहा है। निर्दोष व्यक्ति पुलिस व अदालतों की कार्यवाही का सामना करने के बाद बरी हो भी जाता है तो भी उसके लिए उत्पीड़न को लेकर लगे कलंक को धोना आसान नहीं होता। धारा 498 ए पर अक्सर सवाल उठते रहे है। एक वर्ग लगातारर यह आरोप लगाता रहता है कि इसका इस्तेमाल कई महिलाएं पति और ससुराल वालों को आपराधिक मामलों में फंसाने के लिए करती है। सुप्रीम कोर्ट भी कई बार कह चुका हैं कि खासतौर से दहेज उत्पीड़न के मामलों में सावधानी बरतने की जरूरत है। यह इसलिए भी जरूरी है ताकि कोई कानून का दुरूपयोग नही कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसले में भी यही कहा हैं कि परिवार के सदस्य कई मामलों में पीडि़त के साथ हिंसा की अनदेखी कर रहे हो तो इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि वे भी घरेलू हिंसा के अपराधी है।
समस्या यह है कि कोई महिला थाने जाकर यह कह दे कि उसके साथ पति व ससुराल के लोग क्रूरता कर रहे हैं, तो उन सभी के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाता है। इससे कई बार निर्दोष लोग भी कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते नजर आते है। इसमें शक नहीं हैं कि महिलाओं को उत्पीड़न से बचाना चाहिए, लेकिन इस प्रक्रिया में निर्दोषो का उत्पीड़न नहीं होना चाहिए।
