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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jan 22nd, 11:57 by Jyotishrivatri
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गौतम बुध का आविर्भाव करीब ढाई हजार वर्ष पूर्व महाराजा शुदधोदन के यहां हुआ था। इनकी माता का नाम महारानी महामाया था। इनके अवतरण के कुछ समय बाद माता के देहांत हो जाने के कारण बालक गौतम का लालन और पालन विमाता प्रज्ञावती से हुआ। गौतम के पिता की संतान प्रापण की कामना इनकी पैदाइश से पूरी हुई थी। राजा अपने इस इकलौते पुत्र के प्रति अपार अनुराग रखते थे। गौतम दयालु और दार्शनिक प्रकृति के थे। वह मितभाषी तथा जिज्ञासु प्रकृति के साथ-साथ सहानुभूतिपूर्ण सहज प्रकृति के जनप्रिय बालक थे। वह लोक जीवन जीते हुए परलोक की चिंतन रेखाओं से घिरे हुए थे। दैवज्ञ ने आकाशवाणी की थी कि गौतम जैसे बेटे का महाराज के यहां अवतरित होना उनके लिए अहिवात की बात है और यह उनके कुछ का नाम रौशन करेगा। गौतम बचपन से ही बहुत गंभीर और शांत प्रकृति के थे। आयु बढने के साथ साथ वह गंभीर उदासीन होते चले गये। राजा ने गौतम की यह दशा देख आदेश दिया कि उसे एकांतवास में ही रहने दिया जाए। गौतम को एक जगह एकांत में रखा गया। गौतम को किसी से कुछ बात करने या कहने की मनाही कर दी गयी। केवल खाने पीने नहाने कपडे आदि की सारी सुविधायें दी गयीं।
सेवकों और दासियों को भी यह आदेश दिया गया कि वे कुछ इधर उधर की बातें उनसे न करें। एकांतवास में रहते हुए गौतम संसार के विज्ञान के प्रति तथा प्रकृति के कार्य के प्रति जिज्ञासु हो गये थे। वह सुख सुविधाओं के प्रति कम और वैराग के प्रति अधिक प्रभावित और मोहित हो चले थे।
जिज्ञासु मन अब और मचल गया। गौतम ने बाहर जाकर देखने घूमने और प्रकृति को पास से देखने की कामना प्रकट की। राजा ने उनकी यह कामना जान गौतम को राजभवन में लौट आने का आदेश दे दिया लेकिन राजभवन में लौटने पर गौतम की चिंतन रेखाएं बढती चली गयीं। महाराजा को राज जोतिष ने यह साफ साफ कह दिया था कि यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या फिर संसार के किसी सबसे बड़े धर्म को गति देने वाला बनेगा। इस आकाशवाणी से राजा और सावधान हो गए। कहीं गौतम वैरागी न बन जाए इसके लिए उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा से किया गया। इनसे एक बेटा पैदा हुआ। उसका नाम राहुल रखा गया। राजसी ठाटबाट सुंदर भार्या का प्रेम व बेटे राहुल का अनुराग भी इनकी गंभीरता व उदासीनता को कम न कर सके।
एक दिन गौतम ने देखा कि कुछ लोग एक शव को शमशान ले जा रहे हैं। उन लोगों में से कुछ लोगो की अश्रुधारा बह रही और चहरे लटके हुए थे। जिज्ञासु गौतम के यह पूछने पर सारथी ने बताया कि इस शरीर से जीव के निकल जाने पर यह शरीर माटी के समान हो जाता है जिसे मुर्दा कहते हैं। इससे उनका मन विराग से भर उठा। इस घटना के कुछ दिन बाद एक दिन ऐसा आया कि रात को सोते हुए गौतम अपनी भार्या यशोधरा और पुत्र को छोड़ वैराग के मार्ग पर चल पडे।
सेवकों और दासियों को भी यह आदेश दिया गया कि वे कुछ इधर उधर की बातें उनसे न करें। एकांतवास में रहते हुए गौतम संसार के विज्ञान के प्रति तथा प्रकृति के कार्य के प्रति जिज्ञासु हो गये थे। वह सुख सुविधाओं के प्रति कम और वैराग के प्रति अधिक प्रभावित और मोहित हो चले थे।
जिज्ञासु मन अब और मचल गया। गौतम ने बाहर जाकर देखने घूमने और प्रकृति को पास से देखने की कामना प्रकट की। राजा ने उनकी यह कामना जान गौतम को राजभवन में लौट आने का आदेश दे दिया लेकिन राजभवन में लौटने पर गौतम की चिंतन रेखाएं बढती चली गयीं। महाराजा को राज जोतिष ने यह साफ साफ कह दिया था कि यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या फिर संसार के किसी सबसे बड़े धर्म को गति देने वाला बनेगा। इस आकाशवाणी से राजा और सावधान हो गए। कहीं गौतम वैरागी न बन जाए इसके लिए उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा से किया गया। इनसे एक बेटा पैदा हुआ। उसका नाम राहुल रखा गया। राजसी ठाटबाट सुंदर भार्या का प्रेम व बेटे राहुल का अनुराग भी इनकी गंभीरता व उदासीनता को कम न कर सके।
एक दिन गौतम ने देखा कि कुछ लोग एक शव को शमशान ले जा रहे हैं। उन लोगों में से कुछ लोगो की अश्रुधारा बह रही और चहरे लटके हुए थे। जिज्ञासु गौतम के यह पूछने पर सारथी ने बताया कि इस शरीर से जीव के निकल जाने पर यह शरीर माटी के समान हो जाता है जिसे मुर्दा कहते हैं। इससे उनका मन विराग से भर उठा। इस घटना के कुछ दिन बाद एक दिन ऐसा आया कि रात को सोते हुए गौतम अपनी भार्या यशोधरा और पुत्र को छोड़ वैराग के मार्ग पर चल पडे।
