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MY NOTES 247 जूनियर ज्‍यूडिशियल असिस्‍टेंट हिंदी मोक टाइपिंग टेस्‍ट

created Jan 16th, 05:16 by Anamika Shrivastava


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रिट याचिकाकर्ता का प्रकरण यह है कि वह एक सहायक उप-निरीक्षक के रूप में काम कर रहा था और 26 वी बटालियन एसएएफ गुना के साथ तैनात था। श्रीमती सुनीता शर्मा द्वारा कमांडेंट को इस आशय की शिकायत की गई थी कि वह तलाकशुदा थी और याचिकाकर्ता ने एक मंदिर में उससे शादी करने के बाद दसके साथ शारीरिक संबंध स्‍थापित किए ऐसा लगभग 8 वर्षों तक चलता रहा। याचिकाकर्ता उसके प्रति अपने दायित्‍वों का निर्वहन नहीं कर रहा था। शिकायत के आधार पर डिप्‍टी कमांडेंट द्वारा प्रारंभिक जांच की गई। शिकायत झूठी पाई गइ। इसी तरह की शिकायत पुलिस अधीक्षक से भी की गई थी, जिन्‍होंने नगर पुलिस अधीक्षक के माध्‍यम से जांच की थी। 05.11.2019 को प्रस्‍तुत रिपोर्ट में याचिकाकर्ता को अश्‍लील सेदेश भेजने का दोषी ठहराया गया। शिकायतकर्ता, मोबाइल पर उससे चैट करना, उसके साथ अवैध संबंध स्‍थापित करना आदि। उक्‍त रिपोर्ट के आधार पर, याचिकाकर्ता को आरोप पृ जारी किया गया था और विभागीय जांच शुरू की गई थी। उन्‍हें अंतरंग संबंध स्‍थापित करने के अलावा आरोपों का दोषी पाया गया था। अनुशासनात्‍मक प्राधिकारी ने जांच अधिकारी के निष्‍कर्ष से असहमति जताई और माना कि याचिकाकर्ता सभी आरोपों का दोषी है। याचिकाकर्ता पर सेवा से हटाने का जुर्माना लगाया गया था। इससे व्‍यथित होकर, एक अपील दायर की गई जिसमें सेवा से हटाने दंड को अनिवार्य सेवानिवृत्ति में संशोधित कर दिया गया। उसी पर सवाल उठाते हुए, तत्‍काल रिट याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता द्वारा यह तर्क दिया गया था कि उसके खिलाफ तय किया गया आरोप 'कदाचार' की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है। उक्‍त सीमा तक म.प्र. पुलिस विनियमों के नियम 64(3) पर भरोसा किया गया था। विद्वान एकल न्‍यायाधीश का विचार था कि याचिकाकर्ता के अपने सामान्‍य कर्तव्‍य के बाहर के आचरण को कदाचार नहीं माना जा सकता है। इसलिए अनुशासनात्‍मक प्राधिकारी और अपीलीय प्राधिकारी के आक्षेपित आदेशों को रद्द कर दिया जाए।  
 
 

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