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MY NOTES 247 जूनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट हिंदी मोक टाइपिंग टेस्ट
created Jan 10th, 05:56 by Anamika Shrivastava
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अपीलकर्ता के अधिवक्ता की ओर से उपस्थित विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता श्री मनोज शर्मा का तर्क है कि अधिनियम की धारा 22 सहपठित धारा 23 के प्रावधान अधिकरण को किसी दान पत्र को रद्द करने के लिए या अन्यथा कोई अधिकार नहीं देती है। जब ऐसी कोई शर्त नहीं है कि स्थानांतरित व्यक्ति , उसमें लिखित, बुनियादी सुविधाएं और बुनियादी भौतिक आवश्यकताएं प्रदान करेगा, तो अधिनियम की धारा 23 के तहत शक्ति का प्रयोग उक्त धारा के दायरे से बाहर है। अत: प्राधिकरण को उक्त आदेश पारित करने का कोई अधिकार नहीं था। प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित हुए विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एम.एल.जयसवाल ने इस पर आपत्ति जताई है। उन्होंने इसका विरोध किया है कि आक्षेपित आदेश पारित करने में उसडीएम द्वारा कोई त्रुटि नहीं की गई है। रिट याचिकाकर्ताओं द्वारा दिनांक 07.09.2019 को दान पत्र के निष्पादान से दो दिन पहले, इस आशय के साथ, एक शपथ पत्र दिया था कि वे प्रतिवादी का भरणपोषण करेंगे। इसी आधार पर दान पत्र निष्पादित किया गया था। चूँकि रिट याचिकाकर्ताओं ने प्रतिवादी का भरण पोषरण नहीं किया है, अधिकरण द्वारा अधिनियम की धारा 23 के तहत आदेश पारित करना न्यायोचित था। उन्होंने आगे दलील दी कि यह आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पारित है और इसलिए रिट अपील पोषणीय नहीं है। उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ का निर्णय महेंद्र कुमार जैन बनाम किराया अधिकरण, अजमेर राजस्थान 7 पर भरोसा जताया हैं। इसलिए, उनका अनुरोध है कि अपील खारिज कर दी जाए। अपीलकर्ताओं के विद्वान अधिवक्ता ने इस पर आपत्ति किया है और उन्होंने तर्क दिया कि न्यायालय द्वारा प्रयोग की गई शक्ति अनुच्छेद 227 के तहत नहीं है बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत है। चूंकि यह आदेश एसडीएम द्वारा पारित है, इसलिए, शक्ति का प्रयोग अनुच्छेद 226 के तहत है। इसलिए, तर्कों का आधार ही बेबुनियद है।
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