eng
competition

Text Practice Mode

साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 (( जूनियर ज्‍यूडिशियल असिस्‍टेंट न्‍यू बेच प्रारंभ ))संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Saturday December 21, 07:05 by rajni shrivatri


4


Rating

353 words
373 completed
00:00
आज लकड़ी काटने के लिए मदन घूमता रहा, किंतु उसे कोई सूखा पेड़ नहीं मिला। वह प्रकृति से इतना जुड़ा हुआ था कि वह हरे-भरे वृक्षों को अपने कुल्‍हाड़ी के चोट से नहीं काटता। पेड़-पौधों को वह बेटे के समान मानता था और बेटे की हत्‍या मानव कभी कर ही नहीं सकता। मदन बेहद गरीब था, घर में बुजुर्ग मां-बाप, पत्नि और दो छोटे-छोटे बच्‍चे थे। उनका भरण-पोषण मदन के कार्य से ही चलता था। मदन दिनभर जंगलों में घूमता लकडि़यां जमा करता और शाम तक बाजार में बेचकर खाने-पीने का सामान घर ले आता। इसी से पूरा घर दो वक्‍त की रोटी खा पाता था। जाने आज कैसा दिन था आज उसे कोई सुखी लकड़ी या सुखा पेड़ मिल ही नहीं रहा था। वह थक हार कर एक जगह बैठ गया वह आज बेहद दुखी था कि आज उसे घर ले जाने के लिए अन्‍य पानी का प्रबंध नहीं हो सका। वह सोचते सोचते बेसुध हो गया और वहीं लेट गया। प्रकृति सदैव मानव की रक्षा करती है, मानव के जीवन का एक अभिन्‍न अंग होती है और मनुष्‍य को प्रकृति पुत्र के समान पालन करती है। मदन की ऐसी हालत देख प्रकृति में भी उदासी का भाव था। तभी अचानक एक अनोखी घटना घटती है, पेड़ो से शीतल हवा बहने लगती है। मदन कि अचानक नींद खुलती है तो वह अपने नजदीक एक कपड़े की पोटली पाता है। यह पोटली पेड़ों से चलने वाली हवाओं के साथ मदन के पास आया था। इस पोटली का रहस्‍य यह था- कुछ दिन पूर्व एक भले आदमी को लूट कर जंगली डाकू भाग रहे थे, तभी अचानक उनका पैर फिसला और वह पहाड़ों की दुर्गम खाई में जा गिरे जिससे उनकी मृत्‍यु हो गई। यह पोटली गिरते समय डाकुओं के हाथ से छिटक कर पेड़ पर टंग गई थी। आज आवश्‍यकता की घड़ी में मदन को उन पैसों से सहायता हो सकी।  
मोरल- जब आप किसी की सहायता करते हैं निर्दोष लोगों को परेशान नहीं करते तो प्रकृति भी आपकी सहायता करती है। जब आप प्रकृति का नुकसान पहुंचाते हैं तो प्रकृति भी आप को नुकसान पहुंचाती है, यह नुकसान दीर्घकालिक होता है।

saving score / loading statistics ...