Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 ( जूनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट के न्यू बेंच प्रारंभ) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Dec 17th, 09:09 by lovelesh shrivatri
1
316 words
215 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
केन्द्रीय मंत्रिमंडल की एक देश एक चुनाव विधेयक को मंजूरी से स्पष्ट हो गया है कि मोदी सरकार देश में एक साथ चुनाव की अवधारणा को धरातल पर लाने के लिए संकल्पित है। विधेयक संसद में पेश करने की तैयारी के बीच विपक्षी पार्टियों के विरोध के स्वर भी उठने लगे है। यह जानते हुए भी कि देश में एक साथ चुनाव की व्यवस्था कोई पहली बार लागू नहीं होगी। आजादी के बाद वर्ष 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही कराए गए थे। यह सिलसिला उस समय टूटा, जब 1968 में कुछ राज्यों की विधानसभाएं समय से पहले भंग कर दी गई। सिलसिला नहीं टूटता तो अमरीका, फ्रांस, कनाड़ा, स्वीडन जैसे देशों की तरह भारत में भी एक चुनाव हो रहे होते।
एक देश एक चुनाव विधेयक एक तरह से टूटी कडि़यों को फिर से जोड़ने का प्रयास है। हालांकि विपक्ष का कहना है कि एक साथ चुनाव कराना लोकतंत्र और संविधान की भावना के प्रतिकूल होगा। देश की विशाल आबादी को देखते हुए यह व्यावहारिक नहीं होगा। विपक्ष के इन तर्को का कोई ठोस आधार नजर नहीं आता। जब जीएसटी के रूप में एक देश एक कर का सफल प्रयोग हो चुका है तो एक देश एक चुनाव की व्यवस्था भी लागू की जा सकती है। इस व्यवस्था की जरूरत इसलिए भी महसूस की जा रही है, क्योंकि चुनाव कराना बेहद महंगा हो गया है। भारी खर्च के अलावा बार-बार चुनाव से देश का विकास भी बांधित होता है। हर पांच-छह महीने में अलग-अलग राज्यों में चुनाव से आचार संहिता के कारण जनहित वाली सरकारी घोषणाएं रोकनी पड़ती है। सरकारी मशीनरी हमेशा इलेक्शन मोड़ में बनी रहती है। पांच साल में एक बार चुनाव होगे तो सरकारें विकास कार्यो पर ज्यादा फोकस कर सकेगी। इसके बावजूद एक देश एक चुनाव को लेकर क्षेत्रीय पार्टियों के विरोध को सिर से खारिज नहीं किया जा सकता। उनके इस तर्क में दम है।
एक देश एक चुनाव विधेयक एक तरह से टूटी कडि़यों को फिर से जोड़ने का प्रयास है। हालांकि विपक्ष का कहना है कि एक साथ चुनाव कराना लोकतंत्र और संविधान की भावना के प्रतिकूल होगा। देश की विशाल आबादी को देखते हुए यह व्यावहारिक नहीं होगा। विपक्ष के इन तर्को का कोई ठोस आधार नजर नहीं आता। जब जीएसटी के रूप में एक देश एक कर का सफल प्रयोग हो चुका है तो एक देश एक चुनाव की व्यवस्था भी लागू की जा सकती है। इस व्यवस्था की जरूरत इसलिए भी महसूस की जा रही है, क्योंकि चुनाव कराना बेहद महंगा हो गया है। भारी खर्च के अलावा बार-बार चुनाव से देश का विकास भी बांधित होता है। हर पांच-छह महीने में अलग-अलग राज्यों में चुनाव से आचार संहिता के कारण जनहित वाली सरकारी घोषणाएं रोकनी पड़ती है। सरकारी मशीनरी हमेशा इलेक्शन मोड़ में बनी रहती है। पांच साल में एक बार चुनाव होगे तो सरकारें विकास कार्यो पर ज्यादा फोकस कर सकेगी। इसके बावजूद एक देश एक चुनाव को लेकर क्षेत्रीय पार्टियों के विरोध को सिर से खारिज नहीं किया जा सकता। उनके इस तर्क में दम है।
saving score / loading statistics ...