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यह अपील दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय के दिनांक 19 दिसंबर, 2022 के अंतिम आदेश के विरुद्ध निर्देशित है, जो 1999 की आपराधिक अपील संख्‍या 169 में पारित किया गया था, जिसके तहत आरोपी डॉक्‍टर महेंद्र सिंह दहिया को धारा 302 और 201 के तहत आरोपों से बरी कर दिया गया है। भारतीय दण्‍ड संहिता (संक्षिप्‍त आईपीसी के लिए) निचली अदालत के उस फैसले को रद्द करते हुए जिसके तहत उसे धारा 302 और 201 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया गया था और धारा के तहत अपराध के लिए आजीवन कारावास और 5000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। धारा 201 आईपीसी के तहत 302 आईपीसी और सात साल की कैद और 5000 रुपये का जुर्माना। निचली अदालत से पहले अभियोजन पक्ष यह साबित करने में सफल रहा था कि डॉ. महेन्‍द्र सिंह दहिया (बाद में प्रतिवादी के रूप में संदर्भित) ने भारतीय मूल की एक ब्रिटिश नागरिक अपनी पत्‍नी नमिता की हत्‍या की, मध्‍यरात्रि की रात को की थी। मई, 1979 हत्‍या कथित तौर पर कमरा नम्‍बर 415, होटल एरेनबर्ग, ब्रुसेल्‍स, बेल्जियम में की गई थी। अभियोजन पक्ष का यह भी कहना है कि हत्‍या करने के बाद प्रतिवादी ने पीडिता के शरीर के बड़े पैमाने पर क्षत-विक्षत-विक्षत कर दिया था। बाद में उन्‍होंने ब्रुसेल्‍स शहर में विभिन्‍न स्‍थानों पर शरीर के अंगों का निस्‍तारण किया। हत्‍या के सबूत मिटाने के इरादे से ऐसा किया गया। उपरोक्‍त दोषसिद्धि और सजा को अपील के माध्‍यम से दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय में चुनौती दी गई थी। उच्‍च न्‍यायालय ने पूरे साक्ष्‍य के पुनर्मुल्‍यांकन पर  अपील को स्‍वीकार कर लिया और प्रतिवादी को दोनों आरोपों से बरी कर दिया। उच्‍च न्‍यायालय के उक्‍त निर्णय से व्‍यथित, राज्‍य सीबीआई, नई दिल्‍ली के माध्‍यम से इस न्‍यायालय के समक्ष अपील में है। उच्‍च न्‍यायालय ने आक्षेपित निर्णय की शुरुआत में ही नोटिस किया कि यह एक असामान्‍य मामला है। इसके लिए उच्‍च न्‍यायालय ने आदेश दे दिया है।    
 

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