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MY NOTES 247 जूनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट हिंदी मोक टाइपिंग टेस्ट
created Dec 17th, 02:44 by 12345shiv
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या रुस्तमपुर में, यह भी एक महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर विचार किया जाएगा। उसके पुलिस बयान दर्ज करने में हुई देरी पर भी विचार किया जाएगा। जहां तक अन्य पीडि़त व्यक्ति द्वारा दायर रिट अपील में जारी नोटिस का संबंध है, उसका इस मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि वर्तमान मामले में अपीलकर्ता जो क्लर्क का मूल पद धारण कर रहा था और उसने निलंबन के आदेश को स्वयं ही अपने हस्ताक्षर और मुहर से रद्द करने का आदेश जारी किया था। निलंबन के आदेश के खिलाफ अपील पहले से ही लंबित थी और इस अदालत ने उक्त अपील के निपटारे का निर्देश दिया था। अपीलकर्ता किसी भी तरह से निलंबन के आदेश को रद्द करने के लिए अधिकृत नहीं था। इसके अलावा, प्रतिवादियों द्वारा रिट न्यायालय के समक्ष यह बचाव किया गया कि चूंकि घनश्याम प्रसाद सेन सेवानिवृत्त होने वाले थे, इसलिए निलंबन निरस्तीकरण का आदेश पारितकिया गया था, लेकिन माननीय एकल न्यायाधीश ने पाया कि घनश्याम प्रसाद सेन की सेवानिवृत्ति से पहले दो कार्य दिवस थे और इसलिए निलंबन निरस्तीकरण का आदेश जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। वैसे भी जब अपीलकर्ता के पास निलंबन निरस्तीकरण का आदेश जारी करने का कोई अधिकार नहीं था, तो उसके द्वारा जो कुछ भी किया गया वह अवैध था। वर्तमान मामले में भारत के संविधान का अनुच्छेद 20 और सीआरपीसी की धारा 300 लागू नहीं होगी। यह दावा करने का एकमात्र वैध आधार कि अनुशासनात्मक कार्यवाही को रोका जा सकता है यह सुनिश्चित करना होगा कि आपराधिक मामले में कर्मचारी के अचाव को पक्षपातपूर्ण न बनाया जाए। लेकिन ऐसे आधार भी केवल तयिों और कानून के जटिल प्रश्नों से जुड़े मामलों में ही उपलब्ध होंगे। ऐसे बचाव को विभागीय कार्यवाही में अनावश्यक रूप से देरी करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
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