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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 ( जूनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट के न्यू बेंच प्रारंभ) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Dec 16th, 06:26 by sandhya shrivatri
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महिलाओं को संरक्षण व सुरक्षा देने के लिए हमारे यहां कई कानूनी प्रावधान किए गए है। इसमें संदेह नहीं कि ये कानूनी सुरक्षा कवच महिलाओं को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभाते है। लेकिन जब ऐसे ही किसी सुरक्षा कवच दुरूपयोग होता दिखे तो चिंता होना स्वाभाविक है। बेंगलूरू के एक आइटी पेशेवर की आत्महत्या से जुड़ा मामला इन दिनों चर्चा में है क्योंकि उसने जो सुसाइड नोट छोड़ा है, उसमें अपनी अलग रह रही पत्नी के साथ-साथ ससुराल वालों पर कई गंभीर आरोप लगाए है।
इस प्रकरण के बीच ही दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अदालतों को दहेज उत्पीड़न के मामलों में कानून के दूरूपयोग को रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। यह भी देखना चाहिए कि कहीं इसकी आड़ में पति के रिश्तेदारों को फंसाया तो नहीं जा रहा। शीर्ष अदालत ने साथ ही यह भी जोड़ा कि घेरलू विवाद में कई बार पति के परिवार के सभी सदस्यों को फंसाने की कोशिश की जाती है। हालांकि दहेज प्रताड़ना को गैर जमानती अपराध बनाने का मकसद प्रताडित महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना रहा है, इसीलिए पूर्ववर्ती आईपीसी की धारा 498-ए अब भारतीय न्याय संहिता-2023 की धारा 85 और 86 में इस अपराध के लिए सजा का प्रावधान है। लेकिन इस कानूनी प्रावधान के दुरूपयोग को देखते हुए वर्ष 2010 में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसमें बदलाव की जरूरत की बात कही थी। दुरूपयोग के बढ़ते मामलों के बीच सच यह भी है कि बड़ी संख्या में दहेज प्रताड़ना की शिकार महिलाओं को कानूनी प्रावधानों की वजह से न केवल न्याय मिला है बल्कि दहेज लोलुपों को सजा भी दी गई है। लेकिन कड़वी सच्चाई यह भी है कि दहेज के झूठे मामलों के कारण कई निर्दोष व्यक्तियों व उनके परिवारों को लंबे समय तक प्रताड़ना व सजा तक झेलनी पड़ती है। वे न केवल मानसिक प्रताडना का शिकार होते है बल्कि सामाजिक रूप से भी अलग थलग हो जाते है। यों तो दहेज के झूठे मामले दर्ज कराने पर भी सजा का प्रावधान है, लेकिन कई कानूनी अड़चनों के बीच ऐसे मामले भी पीडित पक्ष को तोड़कर रख देते है। दरअसल, ऐसे मामलों में सबसे मजबूत भूमिका पुलिस जांच व बाद में न्यायपालिका की रहती आई है।
न्यायपालिका सरकार और समाज सबको मिलकर इस समस्या के समाधान की राह तलाशनी होगी।
इस प्रकरण के बीच ही दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अदालतों को दहेज उत्पीड़न के मामलों में कानून के दूरूपयोग को रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। यह भी देखना चाहिए कि कहीं इसकी आड़ में पति के रिश्तेदारों को फंसाया तो नहीं जा रहा। शीर्ष अदालत ने साथ ही यह भी जोड़ा कि घेरलू विवाद में कई बार पति के परिवार के सभी सदस्यों को फंसाने की कोशिश की जाती है। हालांकि दहेज प्रताड़ना को गैर जमानती अपराध बनाने का मकसद प्रताडित महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना रहा है, इसीलिए पूर्ववर्ती आईपीसी की धारा 498-ए अब भारतीय न्याय संहिता-2023 की धारा 85 और 86 में इस अपराध के लिए सजा का प्रावधान है। लेकिन इस कानूनी प्रावधान के दुरूपयोग को देखते हुए वर्ष 2010 में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसमें बदलाव की जरूरत की बात कही थी। दुरूपयोग के बढ़ते मामलों के बीच सच यह भी है कि बड़ी संख्या में दहेज प्रताड़ना की शिकार महिलाओं को कानूनी प्रावधानों की वजह से न केवल न्याय मिला है बल्कि दहेज लोलुपों को सजा भी दी गई है। लेकिन कड़वी सच्चाई यह भी है कि दहेज के झूठे मामलों के कारण कई निर्दोष व्यक्तियों व उनके परिवारों को लंबे समय तक प्रताड़ना व सजा तक झेलनी पड़ती है। वे न केवल मानसिक प्रताडना का शिकार होते है बल्कि सामाजिक रूप से भी अलग थलग हो जाते है। यों तो दहेज के झूठे मामले दर्ज कराने पर भी सजा का प्रावधान है, लेकिन कई कानूनी अड़चनों के बीच ऐसे मामले भी पीडित पक्ष को तोड़कर रख देते है। दरअसल, ऐसे मामलों में सबसे मजबूत भूमिका पुलिस जांच व बाद में न्यायपालिका की रहती आई है।
न्यायपालिका सरकार और समाज सबको मिलकर इस समस्या के समाधान की राह तलाशनी होगी।
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