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created Dec 13th, 13:58 by KRISHNA PRAJAPATI


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यह एक असामान्‍य मामला है। एक निस्‍तारित रिट याचिका के संबंध में राजस्‍थान उच्‍च न्‍यायालय एकल न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति सेठना द्वारा की गई टिप्‍पणियों और आरोपों और पारित आदेश को पूरी तरह असंबंधित और संबद्ध अपराधिक पुनरीक्षण याचिका में रिकॉल के लिये भेजकर जिन्‍हें इस अपील में मुद्दा बनाया गया है केवल उच्‍च न्‍यायालय के अनुशासन मामलों को सौपने और बैंच आंबटित करने के लिये मुख्‍य न्‍यायाधीश की शक्तियों को स्‍पर्श करते है बल्कि न्‍यायिक औचित्‍य को भी छूते है। उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश को अवमानना का नोटिस जारी करने वाले आदेश देने वाले आदेश स्‍थापित तथ्‍यों को इस तरह का नोटिस जारी करने के लिये एकल न्‍यायाधीश के बारे में एक मौलिक प्रश्‍न उठता है। इस मामले में व्‍यक्ति नही बल्कि संस्‍था  की प्रतिष्‍ठा दांव पर है। उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश के रिट याचिका का निस्‍तारण करनी वाली खण्‍डपीठ और वर्तमान सहित राजस्‍थान उच्‍च न्‍यायालय के कुछ पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीशों के खिलाफ जिस तरह से आरोप लगाये गये है। भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश श्री न्‍यायमूर्ति जी एस वर्मा ने हमे बहुत पीड़ा दी है। हम चाहते है कि हमे इस तरह के मामले से जूझना पड़े, लेकिन अगर हम इस मामले से निपटते नही है और इसे इसके टारगेट निष्‍कर्ष तक नही ले जाते हैं, तो हम संस्‍थान के प्रति अपने कर्तव्‍यों में विलक्षण रूप से असफल होंगे। सबसे पहले, 1996 के कुछ प्रमुख एक रिट याचिका संख्‍या 2939 को एक जनहित याचिका के रूप में 9.9.1996 को जोधपुर में राजस्‍थान के उच्‍च न्‍यायालय में इस अदालत के एक वकील द्वारा दायर किया गया था, जिसमें अन्‍य बातों के साथ साथ उपयुक्‍त आवास प्रदान करने के लिये निर्देश देने की मांग की गई थी। राजस्‍थान उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों की और न्‍यायाधीशों के कुछ अन्‍य लाभों के लिये रिट याचिका की कार्यवाही के दौरान सेठना, जे द्वारा समय समय पर कुछ अंतरिम आदेश दिये गये है। 29.4.1997 को सेठना, जे ने  पक्षकारों के उस आवेदन में श्री भंडारी द्वारा कुछ अन्‍य मुद्दों को भी उठाया गया था। अन्‍य बातों के साथ-साथ प्रतिवादी द्वारा उठाई गयी आपत्तियों को खारिज करते हुये श्री भंडारी के रिट याचिका के दायरे में विस्‍तार होगा, श्री भंडारी के आवेदन को सेठना, जे द्वारा 29.6.1997 को अनुमति दी गई थी और उन्‍हें रिट याचिका में याचिकाकर्ता नंबर 2 के रूप में शामिल किया गया। विद्वान एकल न्‍यायाधीश के समक्ष आंशिक सुनवाई के रूप में सूचीबद्ध होने पर मामले को समय समय पर स्‍थगित कर दिया गया था इस बीच रोस्‍टर बदल दिया गया और सेठना, जे को 4.9.1997 और 12.9.1997 के अकेले बैठाने के बजाय एक डिवीजन बैंच में बैठने की आवश्‍यकता पड़ गयी थी।  

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