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यह मामला इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हुआ है, जिसमें वादी ने आरोप लगाया है कि उनके मौलिक अधिकार, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 में संरक्षित हैं, का उल्लंघन हुआ है। वादी ने दावा किया है कि उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार से वंचित किया गया है। प्रतिवादी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि वादी की गतिविधियां सार्वजनिक व्यवस्था और शांति भंग करने वाली थीं। पुलिस ने केवल अपने कर्तव्य का पालन करते हुए उन्हें हिरासत में लिया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने दावा किया कि यह कार्यवाही आवश्यक थी ताकि नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इस मामले में मुख्य प्रश्न यह है कि क्या वादी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है और यदि हां, तो क्या यह उल्लंघन संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत उचित ठहराया जा सकता है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19): यह सत्य है कि भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। हालांकि, यह अधिकार पूर्ण नहीं है और इसके कुछ तार्किक प्रतिबंध हैं, जैसे सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और देश की सुरक्षा। जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21): अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने की प्रक्रिया कानून के अनुरूप और न्यायसंगत होनी चाहिए। न्यायालय ने यह पाया कि पुलिस ने बिना समुचित कारण और बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए वादी को हिरासत में लिया। रिकॉर्ड के अनुसार, वादी की गतिविधियाँ शांतिपूर्ण थीं और उन्होंने किसी भी प्रकार की सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित नहीं किया। इस न्यायालय का यह मानना है कि वादी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। पुलिस की कार्रवाई अनुचित और असंवैधानिक थी। राज्य सरकार और पुलिस ने संविधान में निहित नागरिक अधिकारों का सम्मान नहीं किया। यह न्यायालय राज्य सरकार को निर्देश देता है कि वादी को एक लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाए।
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