Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Dec 10th, 08:19 by lovelesh shrivatri
1
318 words
38 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
लोकतंत्र में जो भी सत्ता के शीर्ष पद पर है उसकी नीतियां व काम करने के ढंग का असर पूरे देश-प्रदेश पर पड़ता है। पिछले सालों में चुनाव केन्द्र के हों या फिर राज्यों की सरकार के लिए, नतीजों में एक बात यह भी देखने में आ रही हैं कि इस देश का युवा अब विकास देखना चाहता है। उसने धर्म, जाति, वंशवाद और भ्रष्टाचार को नकारना शुरू कर दिया है। विकास की जरूरत यों तो हमेशा बनी रहती है लेकिन यह भी एक तथ्य है कि जब किसी प्रदेश की विकास योजनाएं वहां की संस्कृति और भौगोलिक परिस्थितियों से मेल नहीं खाती हैं तो विकास की गति पर ग्रहण की शुरूआत हो जाती है।
एक बात और है, इतिहास केवल देने को याद करता है। लेने वाले का प्रकृति में भी कोई अस्तित्व नहीं माना जाता। यह एक कड़वा सच है और हमारे लोकतंत्र की तस्वीर का मुख्य पहलू भी है। हम लोगों को शासन के लिए चुनते हैं, टैक्स के रूप धन एकत्र करके भी देते है, देश के श्रेष्ठ प्रतिभाशाली नागरिकों को काम सौपते रहे है। पिछले सालों का अनुभव रहा है कि आप इनको कितना भी टैक्स दो, कम पड़ता है। उसके बाद भी गलियां निकालकर धन ऐंठते है, चोरियां करते है, रिश्वत मांगते है, योजनाओं की लागत बढ़ाते रहते है, वंशजों को जोड़ते चले जाते है। आज 75 साल बाद हम कहां है यही इनकी देशभक्ति का प्रमाण है। इनके चिन्तन में माटी से जुड़ाव ही नहीं है, माटी का कर्ज क्या चुकाएंगे।
एक और परिस्थिति भी है इस देश में। विधायिका राजनीति पर आधारित है। उसमें देश के विकास का दृष्टिकोण होना अनिवार्य नहीं है। सरपंच से लेकर मंत्रिमण्डल तक की कोई पात्रता संविधान में नहीं है। इस की भव्यता-व्यापकता वैभिन्य असाधारण है। बड़ा संकल्प चाहिए विकास के लिए और संकल्प चाहिए कार्यपालिका न्यायपालिका में। हर प्रांत में इन्वेस्टमेंट समिट होते रहे है। वे ही आने और वे ही बुलाने वाले।
एक बात और है, इतिहास केवल देने को याद करता है। लेने वाले का प्रकृति में भी कोई अस्तित्व नहीं माना जाता। यह एक कड़वा सच है और हमारे लोकतंत्र की तस्वीर का मुख्य पहलू भी है। हम लोगों को शासन के लिए चुनते हैं, टैक्स के रूप धन एकत्र करके भी देते है, देश के श्रेष्ठ प्रतिभाशाली नागरिकों को काम सौपते रहे है। पिछले सालों का अनुभव रहा है कि आप इनको कितना भी टैक्स दो, कम पड़ता है। उसके बाद भी गलियां निकालकर धन ऐंठते है, चोरियां करते है, रिश्वत मांगते है, योजनाओं की लागत बढ़ाते रहते है, वंशजों को जोड़ते चले जाते है। आज 75 साल बाद हम कहां है यही इनकी देशभक्ति का प्रमाण है। इनके चिन्तन में माटी से जुड़ाव ही नहीं है, माटी का कर्ज क्या चुकाएंगे।
एक और परिस्थिति भी है इस देश में। विधायिका राजनीति पर आधारित है। उसमें देश के विकास का दृष्टिकोण होना अनिवार्य नहीं है। सरपंच से लेकर मंत्रिमण्डल तक की कोई पात्रता संविधान में नहीं है। इस की भव्यता-व्यापकता वैभिन्य असाधारण है। बड़ा संकल्प चाहिए विकास के लिए और संकल्प चाहिए कार्यपालिका न्यायपालिका में। हर प्रांत में इन्वेस्टमेंट समिट होते रहे है। वे ही आने और वे ही बुलाने वाले।
saving score / loading statistics ...