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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 ( जूनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट के न्यू बेंच प्रारंभ) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Dec 3rd, 09:59 by lucky shrivatri
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आखिर पांच दिन के गतिरोध के बाद संसद के शीतकालीन सत्र की कार्यवाही को लेकर सत्ता पक्ष व प्रतिपक्ष में सुल्लह हो गई। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की पहल पर कांग्रेस समेत विपक्ष की संविधान पर चर्चा की मांग को सरकार ने मान लिया है। इसे सुखद संकेत कहा जा सकता हैं क्योंकि संसद के शीतकालीन सत्र में पहले पांच दिन में सिर्फ 50 मिनट ही कामकाज हो पाया। यह तस्वीर यह सवाल करने के लिए काफी हैं कि आखिर हमारा संसदीय लोकतंत्र किस दिशा में जा रहा है। हंगामा और शोरगुल अकेले इसी सत्र में हुआ हो ऐसा नहीं है। बीते दो दशकों में हंगामा और बहिर्गमन एक तरह से संसद का पर्याय बन चुके है। फिर चाहे विपक्ष में कांग्रेस रहे, भाजपा या कोई और। गत 25 नवंबर से शुरू हुआ संसद सत्र 20 दिसंबर तक चलता है।
इस दौरान सदन में 16 विधेयक पेश किए जाने है जिनमें से 11 पर चर्चा होनी है। सत्र के पहले दिन से सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध बना हुआ था। विपक्ष अदाणी, मणिपुर व संभल हिंसा पर चर्चा की मांग को लेकर अड़ा हुआ था। लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का हक है। लेकिन हमारी संसदीय प्रणाली में हंगामा और कार्यवाही बाधित करने को जगह भला क्यों होनी चाहिए? हमारे सांसदों को चुनने वाले करोड़ों मतदाताओं के मन में हर बार एक ही सवाल उठता हैं कि आखिर संसद अपनी भूमिका पर खरी क्यों नहीं उतर पाती। संसद किसी एक पार्टी की नहीं बल्कि सबकी है। लोकसभाध्यक्ष ने ठीक ही कहा कि सहमति असहमति लोकतंत्र की ताकत है लेकिन देश चाहता है कि संसद चले। चिंता इस बात की भी है कि हर बार संसद सत्र की शुरूआत से पहले होने वाली सर्वदलीय बैठक में सभी दल संसद चलाने पर सहमत तो होते हैं लेकिन इस पर अमल शायद ही कभी हो पाता हो। इसके लिए दोषी किसको ठहराया जाए। सत्तापक्ष और विपक्ष लोकतंत्र में एक ही सिक्के के दो पहलू है और दोनो को अपनी-अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए।
इस दौरान सदन में 16 विधेयक पेश किए जाने है जिनमें से 11 पर चर्चा होनी है। सत्र के पहले दिन से सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध बना हुआ था। विपक्ष अदाणी, मणिपुर व संभल हिंसा पर चर्चा की मांग को लेकर अड़ा हुआ था। लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का हक है। लेकिन हमारी संसदीय प्रणाली में हंगामा और कार्यवाही बाधित करने को जगह भला क्यों होनी चाहिए? हमारे सांसदों को चुनने वाले करोड़ों मतदाताओं के मन में हर बार एक ही सवाल उठता हैं कि आखिर संसद अपनी भूमिका पर खरी क्यों नहीं उतर पाती। संसद किसी एक पार्टी की नहीं बल्कि सबकी है। लोकसभाध्यक्ष ने ठीक ही कहा कि सहमति असहमति लोकतंत्र की ताकत है लेकिन देश चाहता है कि संसद चले। चिंता इस बात की भी है कि हर बार संसद सत्र की शुरूआत से पहले होने वाली सर्वदलीय बैठक में सभी दल संसद चलाने पर सहमत तो होते हैं लेकिन इस पर अमल शायद ही कभी हो पाता हो। इसके लिए दोषी किसको ठहराया जाए। सत्तापक्ष और विपक्ष लोकतंत्र में एक ही सिक्के के दो पहलू है और दोनो को अपनी-अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए।
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