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अभ्यास$$$$$$$$ 5
created Nov 21st, 19:35 by _SUBH_
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स्वामी विवेकानंद का जन्म 22 जनवरी, 1863 को कोलकाता नगरी में हुआ था। उनका नाम नरेंद्रनाथ रखा गया। विवेकानंद के जन्म के एक साल पूर्व उनकी माता भुवनेश्वरी देवी ने दत्ता परिवार की एक वृद्ध मौसी को, जोकि वाराणसी में रहते थे, लिखा कि वे वीरेश्वर शिव के पास पूजा-अर्चना करें ताकि उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हो। यह तय किया गया कि हर सोमवार को मौसी वीरेश्वर शिव की पूजा करेंगी और भुवनेश्वरी देवी विशेष तप करेंगी। कहा जाता है कि इस तरह के व्रत को एक साल तक करने से पुत्र की प्राप्ति होती है। भुवनेश्वरी धैर्य के साथ अपने तप में लीन रहीं। वे अपने दिन जप और ध्यान करने में बिताने लगीं। उन्होंने अनेक उपवास किए और अन्य तरह के तप और प्रबल भी किए। उनकी पूर्ण आत्मा शिव का ध्यान करने लगी तथा उनका हृदय प्रेम के साथ भगवान शिव पर एकाग्रित होने लगा।
एक रात भुवनेश्वरी ने एक ज्वलंत स्वप्न देखा। उन्होंने देखा कि भगवान शिव अपनी ध्यान समाधि से उठकर एक पुरुष संतान का रूप ले लेते हैं, जो संतान उनको होने वाली है। वह जागी और सोचने लगी कि यह ज्योति सागर, जिसमें वे अपने आप को निमग्न पा रही थी, स्वप्न मात्र है। उसी समय कोलकाता के दक्षिणेश्वर में श्री रामकृष्ण परमहंस ने वाराणसी की तरफ से एक दिव्य ज्योति को कोलकाता में उतरते हुए देखा। विश्व की रोशनी भविष्य के स्वामी विवेकानंद पर सोमवार, 12 जनवरी, 1863 को पहली बार गिरी। नरेंद्र एक असाधारण, सत्यवादी तथा उच्च आदर्श वाले युवक थे। बचपन से ही उनकी प्रतिभा का आभास पाया जा सकता था। उनकी स्मरण शक्ति एक श्रुतिधर के तुल्य थी। इस कारण उनकी शिक्षा अन्य बालकों जैसी नहीं हुई, क्योंकि एक बार सुनने भर से ही वे सब कुछ हमेशा के लिए याद रख सकते थे। एक प्रवेश परीक्षा से तीन दिन पूर्व दिन-रात जागकर 24 घंटों के भीतर रेखा गणित की चार पुस्तकें आत्मसात कर लीं। मेधावी विवेकानंद विलक्षण प्रतिभाओं के धनी थे।
एक रात भुवनेश्वरी ने एक ज्वलंत स्वप्न देखा। उन्होंने देखा कि भगवान शिव अपनी ध्यान समाधि से उठकर एक पुरुष संतान का रूप ले लेते हैं, जो संतान उनको होने वाली है। वह जागी और सोचने लगी कि यह ज्योति सागर, जिसमें वे अपने आप को निमग्न पा रही थी, स्वप्न मात्र है। उसी समय कोलकाता के दक्षिणेश्वर में श्री रामकृष्ण परमहंस ने वाराणसी की तरफ से एक दिव्य ज्योति को कोलकाता में उतरते हुए देखा। विश्व की रोशनी भविष्य के स्वामी विवेकानंद पर सोमवार, 12 जनवरी, 1863 को पहली बार गिरी। नरेंद्र एक असाधारण, सत्यवादी तथा उच्च आदर्श वाले युवक थे। बचपन से ही उनकी प्रतिभा का आभास पाया जा सकता था। उनकी स्मरण शक्ति एक श्रुतिधर के तुल्य थी। इस कारण उनकी शिक्षा अन्य बालकों जैसी नहीं हुई, क्योंकि एक बार सुनने भर से ही वे सब कुछ हमेशा के लिए याद रख सकते थे। एक प्रवेश परीक्षा से तीन दिन पूर्व दिन-रात जागकर 24 घंटों के भीतर रेखा गणित की चार पुस्तकें आत्मसात कर लीं। मेधावी विवेकानंद विलक्षण प्रतिभाओं के धनी थे।
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