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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 18th, 04:41 by lovelesh shrivatri
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रामूू राम का एक माली था। वह विजय नगर में रहता था। माला बनाने में वह बड़ा ही चतुर था। लोगों को वह पूजा के लिए रोज फूूल देता था। नगर के रहने वाले लोग उसकी इस सेवा से काफी खुश रहते थे और उसे उसके बदले में बहुत धन देते थे। लोग उसे खूब धन देते, पर रामू को कभी संतोष नहीं होता। वह और धन की लालसा करता। अधिक धन पाने के लोभ में वह राजा की सेवा करने लगा। राजा को प्रतिदिन सुंदर-सुंदर मालाएं देने लगा। राजा उससे बहुत खुश रहते और उसे खूब धन देते। धन बटोरने पर भी उसका लोभ नहीं मिटा।
एक दिन उसने सोचा, मुझे अपना धन कला, कृषि आदि व्यापार में लगा देना चाहिये। अधिक से अधिक धन पाने का यही उपाय है। ऐसा सोचकर उसने एक साथ कई व्यापार करना आरंभ कर दिया। उसे किसी पर विश्वास नहीं था। इसलिये व्यापार के सरे झमेले वही पालता। अनेक काम एक साथ हाथ में लेने से वह संकट में पड़ गया। वह बेचैन और उदास हो गया। उससे कोई काम ठीक से नहीं हो पाता। ऐसे में माली की हालात देखकर राजा बहुत क्रोधित हो गया। उसने माली की सारी संपत्ति छीन ली।
एक दिन कुछ फूल लेकर रात में दूसरे नगर में जा रहा था। उसी रास्ते में दो नदियां बहती थी नदियों के बीच सात मटके बह रहे थे। उसे आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगा कि यह आश्चर्य की ही तो बात है कि मटकों में जीव नहीं है, फिर भी वे जीवधारी की तरह एक नदी से दूसरी नदी में जा रहे है। मालूम पड़ता है कि यह धन से भरे मटके हैं। ये देवताओं की कृपास से चलायमान है। उसने मटकों की पूजा की। पूजा से वे मटके बड़े प्रसन्न हुए। एक रात माली ने प्रथम मटके की पूजा की। वह बड़ा खुश हुआ, उसके भीतर से एक आवाज निकली, पीछे जो मटका आ रहा है उसमें सोना भरा है। उसमें में सोना निकाल लेना। इस प्रकार छह मटकों ने उससे एक ही बात कहीं। अब सातवों मटके के आने की बारी थी, उसका ढक्कन खुला था। उस मटके ने कहा, इसमें से तीन अंजलि सोना निकाल लो। माली ने तीन अंजलि सोना निकाल लिया। अब उकसा लालच बढ़ा। उसने फिर थोड़ा सोना निकाल लिया। तीन के बाद चार, छह, दस यहा तक माली लालच के चलते मटके को छोड़ ही नहीं रहा था अचानक मटके का मुंह बंद हो गया और वह चलने लगा। माली के दोनों हाथ उसमें फंस गए थे उसने हाथ निकालना चाहा, किंतु उसके सारे प्रयास बेकार गए। मटके में हाथ और बुरी तरह फंसते गए। अंत में माली बेहोशी की हालत में नदी में गिर पड़ा और मर गया। लोभ और लालच ने उसे मृत्यु तक पहुंचा दिया था।
एक दिन उसने सोचा, मुझे अपना धन कला, कृषि आदि व्यापार में लगा देना चाहिये। अधिक से अधिक धन पाने का यही उपाय है। ऐसा सोचकर उसने एक साथ कई व्यापार करना आरंभ कर दिया। उसे किसी पर विश्वास नहीं था। इसलिये व्यापार के सरे झमेले वही पालता। अनेक काम एक साथ हाथ में लेने से वह संकट में पड़ गया। वह बेचैन और उदास हो गया। उससे कोई काम ठीक से नहीं हो पाता। ऐसे में माली की हालात देखकर राजा बहुत क्रोधित हो गया। उसने माली की सारी संपत्ति छीन ली।
एक दिन कुछ फूल लेकर रात में दूसरे नगर में जा रहा था। उसी रास्ते में दो नदियां बहती थी नदियों के बीच सात मटके बह रहे थे। उसे आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगा कि यह आश्चर्य की ही तो बात है कि मटकों में जीव नहीं है, फिर भी वे जीवधारी की तरह एक नदी से दूसरी नदी में जा रहे है। मालूम पड़ता है कि यह धन से भरे मटके हैं। ये देवताओं की कृपास से चलायमान है। उसने मटकों की पूजा की। पूजा से वे मटके बड़े प्रसन्न हुए। एक रात माली ने प्रथम मटके की पूजा की। वह बड़ा खुश हुआ, उसके भीतर से एक आवाज निकली, पीछे जो मटका आ रहा है उसमें सोना भरा है। उसमें में सोना निकाल लेना। इस प्रकार छह मटकों ने उससे एक ही बात कहीं। अब सातवों मटके के आने की बारी थी, उसका ढक्कन खुला था। उस मटके ने कहा, इसमें से तीन अंजलि सोना निकाल लो। माली ने तीन अंजलि सोना निकाल लिया। अब उकसा लालच बढ़ा। उसने फिर थोड़ा सोना निकाल लिया। तीन के बाद चार, छह, दस यहा तक माली लालच के चलते मटके को छोड़ ही नहीं रहा था अचानक मटके का मुंह बंद हो गया और वह चलने लगा। माली के दोनों हाथ उसमें फंस गए थे उसने हाथ निकालना चाहा, किंतु उसके सारे प्रयास बेकार गए। मटके में हाथ और बुरी तरह फंसते गए। अंत में माली बेहोशी की हालत में नदी में गिर पड़ा और मर गया। लोभ और लालच ने उसे मृत्यु तक पहुंचा दिया था।
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