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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 ( जूनियर ज्‍यूडिशियल असिस्‍टेंट के न्‍यू बेंच प्रारंभ) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

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जैसा कि हमें ज्ञात है, 1919 के अधिनियम द्वारा स्‍थापित दोहरी शासन-प्रणाली पूर्ण असफल रही, क्‍योंकि वह भारत में एक उत्तरदायित्‍वपूर्ण सरकार की स्‍थापना कर सकी। भारत की जनता को शीघ्र ही पता चल गया  कि अंग्रेजों से आजादी हासिल करना आसान नहीं था। परिणामस्‍वरूप भारतवासियों ने नये उत्‍साह और नयी प्रेरणा से अपने स्‍वतन्‍त्रता संग्राम को आगे बढ़ाया। इसी समय महात्‍मा गांधी भातरीय राजनीति में आये। उन्‍होंने अपने तरीके से स्‍वतन्‍त्रता की लड़ाई का नेतृत्‍व किया फलत: भारत के सभी राजनीतिक दलों ने इस कमीशन का बहिष्‍कार किया। आयोग की रिपोर्ट से यह स्‍पष्‍ट था कि वह भारत में उत्तरदायी केन्‍द्रीय सरकार की स्‍थापना के विरूद्ध था। आयोग की रिपार्ट श्‍वेत पत्र में उल्लिखित सुधारों पर विचार करने के लिए उसे संसद की सेलेक्‍ट समिति को सौंप दिया गया। इस समिति के सुझावों के आधार पर ब्रिटिश संसद में एक विधेयक लाया गया जो पारित होकर 1935 का भारत सरकार अधिनियम कहलाया।  
1935 के अधिनियम ने सर्वप्रथम भारत में संघात्‍मक सरकार की स्‍थापना की। पिछले सभी अधिनियमों के अन्‍तर्गत स्‍थापित सरकारों का स्‍वरूप एकात्‍मक था। यह संघ ब्रिटिश भारतीय प्रान्‍तों तथा कुछ भारतीय रियासतों को, जो संघ में शामिल होने को सहमत थी, मिलाकर बनाया जाता था। इस प्रकार संघ की सदस्‍यता राज्‍यों की इच्‍छा पर निर्भर थी और जब तक राज्‍यों ने इस संघ में शामिल होने की सहमति दे दी हो, उक्‍त संघ की स्‍थापना सम्‍भव नहीं थी। अधिनियम के अन्‍तर्गत में शामिल होते समय रियासतों के शासकों को एक प्रवेश प्रलेख पर हस्‍ताक्षर करना पड़ता था, जिसके द्वारा केन्‍द्रीय सरकार को समर्पित प्राधिकार की सीमा का उल्‍लेख किया गया था। अन्‍य विषयों के बारे में इन इकाइयों को पूर्ण स्‍वतन्‍त्रता थी, किंतु प्रान्‍तों के शासकों ने संघ में शामिल होने की कभी सहमति नहीं दी और इस प्रकार 1935 के अधिनियम द्वारा परिकल्पित अखिल भारतीय संघ की स्‍थापना हो सकी।  

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