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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 (( जूनियर ज्‍यूडिशियल असिस्‍टेंट न्‍यू बेच प्रारंभ ))संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

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अदालतें दिल्‍ली में पटाखों को प्रतिबंधित करने को लेकर सरकार को निर्देश देते-देते भले ही थक गई हो लेकिन इन निर्देशों को कर बार हवा में उड़ाने में जिम्‍मेदार पीछे नहीं रहते। सोमवार को एक बार फिर देश की सबसे बड़ी अदालत ने दिल्‍ली पुलिस को आड़े हाथों लेते हुए टिप्‍पणी कर डाली कि पुलिस की कार्रवाई दिखावा भर है। अदालत ने सख्‍त रवैया अपनाते हुए साफ कहा कि पुलिस प्रतिबंधों को गंभीरता से लागू करने में विफल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से 25 नवंबर से पहले दिल्‍ली में एक साल के लिए पटाखों पर प्रतिबंध का फैसला लेने को कहा है।  
अदालत का यह कहना सही है कि साफ हवा में सांस लेना नागरिकों का मौलिक अधिकार है। पर दिल्‍ली ही नहीं, समूचे देश में दिवाली पर ही नहीं बल्कि हर खुशी के मौके पर आतिशबाजी आम है। फिर चाहे यह मौका शादी-विवाह का हो, क्रिकेट मैच में भारतीय टीम की जीत की खुशी का हो या फिर नए साल के स्‍वागत का। अदालतें ही नहीं, देश का आम आदमी भी बढ़ते प्रदूषण से परेशान है। देश भर में सांस के मरीजों की संख्‍या भी साल-दर साल बढ़ रही है। हां, इतना जरूर है  कि दिल्‍ली का संकट बाकी जगहों से ज्‍यादा है। पर इस तथ्‍य के दूसरे पहलू पर भी गौर करना आवश्‍यक है। देश आज सिर्फ वायु प्रदूषण से ही नहीं, बल्कि ध्‍वनि और जल प्रदूषण की मार से भी जूझ रहा है। ये प्रदूषण लाइलाज बीमारियों का सबब बनते जा रहे है। इन बीमारियों की रोकथाम सिर्फ अदालती निर्देशों से नहीं की जा सकती है। दिल्‍ली में पटाखों पर पूरे साल के लिए प्रतिबंध लगाना कितना आसान होगा, इस बारे में अभी कुछ कहना मुश्किल है, लेकिन देश के अन्‍य हिस्‍सों में भी पटाखों का प्रदूषण रहित स्‍वरूप और सीमित रूप में इस्‍तेमाल कैसे हो इस बारे में विचार जरूर किया जाना चाहिए, क्‍योंकि आतिशबाजी को खुशियों से जोड़ा जाता रहा है।  
 
 
 
   

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