eng
competition

Text Practice Mode

Malti Computer Center Tikamgarh (Classes available for CPCT Exam)

created Nov 12th, 02:41 by MCC21


0


Rating

488 words
14 completed
00:00
यह बात अच्छे से जानी-समझी हुई है कि संविधान में एक आर्थिक दर्शन है जिसकी जड़ें समाजवादी सिद्धांतों में हैं, जो मुख्य रूप से राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में सन्निहित हैं। हालांकि, एक सवाल जो अक्सर न्यायिक समीक्षा के लिए उठता है, वह यह है कि साझा भलाई (कॉमन गुड) को बढ़ावा देने और संपदा उत्पादन के साधनों का केंद्रीकरण रोकने की राज्य की जिम्मेदारी को व्यक्तियों के मूल अधिकारों के खिलाफ कितनी दूर तक जाने की इजाजत दी जा सकती है। “समुदाय के भौतिक संसाधनों का वितरण इस तरह किया जाए कि साझा भलाई को बढ़ावा मिले” और आर्थिक तंत्र को साझा क्षति के लिए काम करने से रोका जा सके, यह सुनिश्चित करने की राज्य की जिम्मेदारी का उल्लेख अनुच्छेद 39(बी) और (सी) में है। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ के हालिया फैसले ने यह माना है कि सभी निजी संसाधन अनुच्छेद 39 में उल्लिखित समुदाय के ‘भौतिक संसाधनों’ के दायरे में नहीं आयेंगे। यह फैसला इस बात के परीक्षण के लिहाज से उल्लेखनीय है कि क्या अंतर्निहित आर्थिक सोच को एक विस्तृत नजरिया प्रदान किया जाना चाहिए, या इसे लेकर कुछ सीमाएं हैं कि किस तरह की निजी संपत्ति राज्य कार्रवाई का विषय हो सकती है। शीर्ष अदालत की बहुमत की राय ने इसके दायरे में आने वाले किन्हीं भी निजी संसाधनों (व्यक्तियों के मालिकाने वाले सहित) के हक में उस विस्तृत नजरिये को खारिज किया है जो कुछ नजीरों में अपनाया गया। आज की आर्थिक सच्चाइयों के अनुरूप, उसने माना है कि इस निर्देशक सिद्धांत को किसी खास विचारधारात्मक चश्मे से नहीं देखा जा सकता, और ऐसे पुराने सूत्रीकरणों का खारिज किया है।
    बहुमत का नजरिया यह है कि भले ही, सैद्धांतिक रूप से, निजी संसाधन समुदाय के संसाधनों का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन साझा भलाई की तलाश में उन्हें अधिगृहीत या वितरित करने के वास्ते राज्य के लिए इन “कारकों की इस अपूर्ण सूची” के आधार पर विचार करना उपयुक्त होगा : संसाधनों की प्रकृति और उनकी विशेषताएं, क्या इस तरह का अधिग्रहण समुदाय के लिए अनिवार्य है, ऐसे संसाधनों की किल्लत, और निजी हाथों में उनका केंद्रीकरण होने के नतीजे। जमीन अधिग्रहण हमेशा से ‘एमीनेंट डोमेन’ (मुआवजा देकर निजी संपत्ति के अधिग्रहण का सरकारी अधिकार) के सिद्धांत पर आधारित रहा है, जबकि प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रियाओं की जरूरत होगी। दूसरी तरफ, यूटिलिटीज, सेवाओं और उद्योगों के राष्ट्रीयकरण को निर्देशक सिद्धांतों के जरिये संवैधानिक औचित्य की जरूरत पड़ी है। बहुमत का यह मानना सही है कि संविधान-निर्माताओं ने जान-बूझ कर अनुच्छेद 39 को व्यापक अर्थ वाले शब्दों में लिखा है ताकि वे भविष्य की सरकारों को किसी खास तरह की आर्थिक सोच से बांधें। हालांकि, जस्टिस सुधांशु धूलिया की असहमति महत्वपूर्ण है। समाज में जारी गैर-बराबरी पर जोर देते हुए, उन्होंने “भौतिक संसाधनों” के दायरे को सीमित करने की कोशिश के लिए बहुमत पर सवाल उठाया। उनके मुताबिक, बेहतर तरीका यह होता कि इसे विधायिका की समझदारी पर छोड़ दिया जाता।

saving score / loading statistics ...