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created Oct 19th, 04:22 by AD GROUP OF INSTITUTE Morena Madhya Pradesh
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न्यायालय इस धारा के उद्देश्यों और कारणों के कथन से यह प्रतीत करता है कि यह उपबन्ध प्रभावी अन्वेषण को सुलभ कराने की दृष्टि से किया गया है।ऐसा मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी उस पर अपना नाम पृष्ठांकित करेगा और ऐसा पृष्ठांकन उस पुलिस अधिकारी के लिए, जिसको वह वारण्ट निदिष्ट किया गया है उसका निष्पादन करने के लिए पर्याप्त प्राधिकार होगा और स्थानीय पुलिस यदि ऐसी अपेक्षा की जाती है तो ऐसे अधिकारी की, ऐसी ऐसे वारण्ट का निष्पादन करने में सहायता करेगी। जब कभी यह विश्वास करने का कारण हो कि उस मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी का जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर वह वारण्ट निष्पादित किया जाना है, पृष्ठांकन प्राप्त करने में होने वाले विलम्ब से ऐसा निष्पादन न हो पाएगा, तब वह पुलिस अधिकारी जिसे वह निदिष्ट किया गया है उसका निष्पादन उस न्यायालय की जिसने उसे जारी किया है, स्थानीय अधिकारिता से परे किसी स्थान में ऐसे पृष्ठांकन के बिना कर सकता है। यदि न्यायालय ठीक समझता है तो वह निदेश भी दे सकता है कि उद्घोषणा विनिर्दिष्ट दिन उपधारा (2) के खण्ड (1) में विनिर्दिष्ट रीति से सम्यक् रूप से प्रकाशित कर दी गई है, इस बात का निश्चायक साक्ष्य होगा कि इस धारा की अपेक्षाओं का अनुपालन कर दिया गया है और उद्घोषणा उस दिन प्रकाशित कर दी गयी थी। यदि किसी न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति जिसके विरुद्ध उसने वारण्ट जारी किया है, फरार हो गया है, या अपने को छिपा रहा है जिससे ऐसे वारण्ट का निष्पादन नहीं किया जा सकता तो ऐसा न्यायालय उससे यह अपेक्षा करने वाली लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है कि वह व्यक्ति विर्निष्ट स्थान में और विनिर्दिष्ट समय पर, जो उस उद्घोषणा के प्रकाशन की तारीख से कम से कम तीस दिन पश्चात् का होगा, हाजिर हो। वह उस नगर या ग्राम के, जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है, किसी सहजदृश्य स्थान में सार्वजनिक रूप से पढ़ी जाएगी। पक्षकारों को न्यायालय में हाजिर होने को विवश करने के लिए डाक द्वारा नोटिस जारी करना इस संहिता द्वारा अपेक्षित प्रक्रिया नहीं है। हाजिर होने को विवश करनेे के लिए मामूली प्रक्रिया यह है कि सर्वप्रथम धारा 61 के अधीन समन जारी किया जाय और यदि समन तामील नहीं हो सकता है तो वारण्ट जारी करना उस न्यायालय का कर्त्तव्य है।
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