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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Oct 17th, 06:34 by lucky shrivatri
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भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) में महिला उत्पीड़न से जुड़ी धारा 498-ए के दुरूपयोग को लेकर सवाल उठते रहे है। घरेलू हिंसा की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए वर्ष 1993 में आइपीसी में इस धारा को संशोधन के रूप में जोड़ा गया था। विधिवेत्ताओं से लेकर देश का शीर्ष कोर्ट तक इस तथ्य पर चिंता जता चुका है कि कई मामलों में इस धारा के प्रावधानों का इस्तेमाल विवाहिता के पति और उसके रिश्तेदारों को फंसाने के लिए किया जाने लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के हाईकोर्ट रजिस्ट्रार और राज्यों के पुलिस प्रमुखों को ये निर्देश दिए हैं कि वे ऐसे मामलों में जांच प्रक्रिया को लेकर अर्नेश कुमार गाइडलाइन का सख्ती से पालन करें।
यह सच है कि पिछले सालों में जिस तरह इस धारा का दुरूपयोग बढ़ा है, उससे महिला उत्पीड़न के सही मामलों पर भी अंगुलियां उठ जाती है। वहीं 498-ए के तहत झूठे मामलों की बढ़ती संख्या इस प्रावधान के मूल मकसद के पूरा होने में भी बाधक नजर आती है। वैसे तो यह प्रावधान घरेलू हिंसा के मामलों में महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने वाला कवच है। लेकिन जब यह कहा जाने लगे कि दहेज उत्पीड़न जैसे मामले भी एक पक्ष से बदला लेने का हथियार बनते जा रहे हैं तो सवाल उठता लाजिमी है। इस धारा के दुरूपयोग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ऐसे प्रकरणों में प्रत्येक 100 में से सिर्फ 17 केस में ही दोषी को सजा मिलती है। वर्ष 2021 में अदालतों में धारा 498-ए से जुडे 25,158 मामलों में ट्रायल हुआ था जिनमें से 4,145 मामलों में ही आरोपी पर दोष साबित हो सका है। शेष मामलों में या तो समझौता हो गया या फिर आरोपी बरी हो गए। आपराधिक कानून सुधारों कानूनों के दुरूपयोग को लेकर सामाजिक स्तर पर तो आवाज उठती ही है पुलिस राजनेताओं के बयानों के साथ-साथ कोर्ट में भी इसको तर्क-वितर्क दिए जाते रहे है। यह बात भी सही है कि घरेलू हिंसा की पीडिताओं को सुरक्षा कवच मिलता रहना चाहिए। लेकिन कानून के प्रावधानों का दुरूपयोग नहीं हो, इसका ध्यान जांच एजेसियों को रखना होगा।
खास तौर से पुलिस की यह बड़ी जिम्मेदारी है कि जांच के दौरान वह विवेक से काम ले। एफआइआर से पहले की पुलिस पड़ताल इसमें अहम भूमिका निभा सकती है। यह ध्यान रखना होगा कि जरा सी भी चूक पीडि़त महिलाओं को न्याय पाने से वंचित कर सकती है।
यह सच है कि पिछले सालों में जिस तरह इस धारा का दुरूपयोग बढ़ा है, उससे महिला उत्पीड़न के सही मामलों पर भी अंगुलियां उठ जाती है। वहीं 498-ए के तहत झूठे मामलों की बढ़ती संख्या इस प्रावधान के मूल मकसद के पूरा होने में भी बाधक नजर आती है। वैसे तो यह प्रावधान घरेलू हिंसा के मामलों में महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने वाला कवच है। लेकिन जब यह कहा जाने लगे कि दहेज उत्पीड़न जैसे मामले भी एक पक्ष से बदला लेने का हथियार बनते जा रहे हैं तो सवाल उठता लाजिमी है। इस धारा के दुरूपयोग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ऐसे प्रकरणों में प्रत्येक 100 में से सिर्फ 17 केस में ही दोषी को सजा मिलती है। वर्ष 2021 में अदालतों में धारा 498-ए से जुडे 25,158 मामलों में ट्रायल हुआ था जिनमें से 4,145 मामलों में ही आरोपी पर दोष साबित हो सका है। शेष मामलों में या तो समझौता हो गया या फिर आरोपी बरी हो गए। आपराधिक कानून सुधारों कानूनों के दुरूपयोग को लेकर सामाजिक स्तर पर तो आवाज उठती ही है पुलिस राजनेताओं के बयानों के साथ-साथ कोर्ट में भी इसको तर्क-वितर्क दिए जाते रहे है। यह बात भी सही है कि घरेलू हिंसा की पीडिताओं को सुरक्षा कवच मिलता रहना चाहिए। लेकिन कानून के प्रावधानों का दुरूपयोग नहीं हो, इसका ध्यान जांच एजेसियों को रखना होगा।
खास तौर से पुलिस की यह बड़ी जिम्मेदारी है कि जांच के दौरान वह विवेक से काम ले। एफआइआर से पहले की पुलिस पड़ताल इसमें अहम भूमिका निभा सकती है। यह ध्यान रखना होगा कि जरा सी भी चूक पीडि़त महिलाओं को न्याय पाने से वंचित कर सकती है।
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