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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Oct 10th, 13:33 by lucky shrivatri


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यह धारा न्‍यायालय या मजिस्‍ट्रेट को अभियोजन की साक्ष्‍य लेने के पश्‍चाय अभियुक्‍त का परीक्षण करने की शक्ति प्रदान करती है। इस धारा का मूल उद्देश्‍य अभियुक्‍त को अपने बचाव में उन परिस्थितियों के बारे में स्‍पष्‍टीकरण देने का अवसर प्रदान करना है जो साक्ष्‍य में उसके विरूद्ध प्रतीत हो रही हो। इस धारा के उपबंध अभियुक्‍त को उस दशा में विशेष लाभकारी हैं जब वह अपनी प्रतिरक्षा नहीं कर पा रहा हों। यदि अभियुक्‍त अप्रतिरक्षित हो, तो न्‍यायालय उसके हित के लिए किसी साक्षी का परीक्षण कर सकेगा। इस धारा के अधीन न्‍यायालय द्वारा अभियुक्‍त से प्रश्‍न पूछे जाने का उद्देश्‍य यह होता है कि उन परिस्थितियों को स्‍पष्‍ट कर सके, जो साक्ष्‍य में उसके विरूद्ध जा रही हो। उदाहरणार्थ यदि अभियुक्‍त के पास से कोई  वस्‍तु बरामद की गई हो, जो उसे अपराध में फंसाने के लिए पर्याप्‍त साक्ष्‍य हैं, तो न्‍यायालय उससे यह स्‍पष्‍टीकरण मांग सकता है कि वह वस्‍तु उसके पास कैसे आई।  
उल्‍लेखनीय है कि भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 20 में यह अपबंधित है कि कोई भी व्‍यक्ति स्‍वयं के विरूद्ध साक्ष्‍य देने के लिए बाध्‍य नहीं किया जाएगा। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 अभियुक्‍त व्‍यक्ति को साक्षी के रूप में संपरिवर्तित नहीं करती है, अत: इस धारा के उपबंधों के अनुच्‍छेद 20 (3) का अतिलंघन नहीं माना जाएगा। इस धारा का प्रवर्तन उस दशा में लगू नहीं होगा जब मजिस्‍ट्रेट ने अन्‍वेषण के अनुक्रम में संस्‍वीकृति अभिलिखित की हो। यह आवश्‍यक नहीं है कि  आरोप विरचित किये जाने के पूर्व अभियुक्‍त व्‍यक्ति का परीक्षण किया जाए, क्‍योंकि धारा 313 के उपबंध स्‍पष्‍टतया अभियुक्‍त के हितों की रक्षा करते हैं, कि उसका अभिनिर्धारण करते है।  
ज्ञातव्‍य है कि संहिता की धारा 125 126 अधीन की गई कार्यवाही में विरोधी पक्षकार की स्थिति अभियुक्‍त के समरूप नहीं होती है, अत: इस प्रकार के मामलों में धारा 313 का प्रवर्तन अमान्‍य होगा। इसी प्रकार इस धारा को धारा 205 के उपबंधों के अध्‍यधीन पढ़ा जाना चाहिए। अत: यदि धारा 313 के अधीन अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए मजिस्‍ट्रेट किसी अभियुक्‍त को वैयक्तिक उपस्थिति से मुक्ति दे देता है, तो उस दशा में वह वैयक्तिक रूप से अभियुक्‍त से प्रश्‍न पूछने के लिए बाध्‍य नहीं होगा। मजिस्‍ट्रेट द्वारा अभियुक्‍त का परीक्षण स्‍थगित रखने के कारणों का अभिलिखित किया जाना आवश्‍यक नहीं है। यदि किसी मामले में अभियोजन की साक्ष्‍य समाप्‍त होने के पश्‍चात अभियुक्‍त द्वारा शपथ पत्र दायर किया गया हो, तो इस धारा के अधीन वह साक्ष्‍य परीक्षण का स्‍परूप नहीं ले सकती है।  

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